वैदिक काल की सभ्यता का उदय
प्रागैतिहासिक काल के समाप्त होने के बाद वैदिक काल का उदय होता है. वैदिक काल तथा कला – वैदिक काल प्राचीन भारतीय संस्कृति का एक काल हैं. वैदिक काल धातु युग के साथ प्रारंभ होता है. इस समय की कला के उदाहरण बहुत कम प्राप्त हुए हैं. मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सिंधु नदी की घाटी में स्थित थे, और यहां पर एक उच्च सभ्यता विकसित हुई, इस कारण उसको विद्वानों ने सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से पुकारा हैं. यह वैदिक सभ्यता विशाल रूप से उत्तरी भारत के मैदानों में फैली हुई थी. वैदिक काल नोट्स .
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वैदिक काल को आसानी से समझा जा सके इसलिए इसे दो भागों में विभाजित किया है –
- ऋग्वैदिक या पूर्व वैदिक काल.
- उत्तर वैदिक काल.
यहां पर हमने वैदिक काल की कला को संक्षिप्त में समझाने पर अधिक जोर दिया है. आगे हम आपको वैदिक काल की कला को विस्तार से बताएंगे.
वैदिक काल में धातु- युग
प्रागैतिहासिक काल के समाप्त होने के बाद ही धातु युग के साथ वैदिक काल का उदय होता है. दक्षिण भारत में पाषाण काल के बाद लौह युग ही आरंभ हुआ. परंतु उत्तरी भारत में ताम्र और सिंध में कांस्य युग के बाद ही पूरे भारत में लौह युग आया. इसके बाद दक्षिण भारत में बहुत सी काँसे की बनी सामग्री भी मिली. परंतु यह बाद की है या दूसरे क्षेत्र से आई है इसका कुछ पता नहीं. वैदिक काल इन हिंदी .
मध्य प्रदेश के गुनजेरिया नामक ग्राम में तांबे के बने यंत्रों के 424 उदाहरण प्राप्त हुए हैं. जो लगभग 2000 वर्ष ईसा पूर्व के हैं. इसी प्रकार उत्तरी भारत में कानपुर, फतेहपुर, मैनपुरी तथा मथुरा जिले में तांबे के बने प्रागैतिहासिक युग के यंत्र तथा हथियार भी प्राप्त हुए हैं. और उत्तर-पूर्व में हुगली से लेकर, पश्चिम में सिंध तक पूरे क्षेत्र से तांबे के हंसियो, तलवारों तथा भालों के फलको आदि के उदाहरण भी प्राप्त हुए हैं. ताम्र और कांस्य युग का उत्तरी भारत में बहुत पहले से ही आरंभ हो चुका था. और लौह युग भी दक्षिण भारत से पहले ही आरंभ हो गया था. दक्षिण भारत में, पाषाण युग कालांतर तक चलता रहा. कहा जाता है अथर्ववेद अनुमानत: है 2500 पूर्व का है. और दूसरी बात यह कही जाती है कि ग्रीक इतिहासकार हेरोडोटस के लेखों से यह ज्ञात होता है कि फारस के सम्राट एकसराएक्स ( Xerxes) की अध्यक्षता में 480 ईसा पूर्व में जो भारतीय सेना यूनान के विरुद्ध लड़ी, उसने लोहे के फलको से युक्त तीरो का प्रयोग किया. वैसे इस समय की कला के उदाहरण बहुत कम प्राप्त हुए हैं. केवल मोहनजोदड़ो और हड़प्पा क्षेत्र की खुदाई से कांस्य युग की कला के उदाहरण प्राप्त हुए हैं. मोहनजोदड़ो और हड़प्पा “सिंधु नदी की घाटी” में स्थित है, और यहां पर एक उच्च सभ्यता विकसित हुई. इसी कारण इसको विद्वानों ने सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से भी पुकारा है. यह वैदिक सभ्यता अच्छी लंबी चौड़ी उत्तरी भारत के मैदानों में फैली हुई थी.
सिंधु घाटी सभ्यता की कला (3500 ई. पूर्व से 2500 ई. पूर्व तक)
चीन से लेकर मध्य एशिया तक और भारत में ईसा से 4000 वर्ष पूर्व से लेकर, ईसा से 3000 वर्ष पूर्व के मध्य, एक सभ्यता का जन्म हुआ था. इस सभ्यता की खोज का श्रेय सरजॉन मार्शल तथा डॉक्टर अरनेस्ट मैक को जाता है. उन्होंने सन 1924 ई. में इस सभ्यता का संसार को ज्ञान करवाया था. इस विशाल क्षेत्र में लाल तथा काली पकाई हुई मिट्टी के बर्तन बनाने की कला का विशेष विकास हुआ. यह बर्तन पशु पक्षियों की आकृतियों, मानव आकृतियों तथा ज्यामितिक आकारों के अभिप्राय से अलंकृत किए जाते थे. पुराने लोगों ने इस सभ्यता को “मृण्य- पात्रों” की सभ्यता के नाम से भी पुकारा है. भारत तथा पाकिस्तान में इस प्रकार की सामग्री मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, चानूदड़ो, झांगर, झुकर, कुल्ली एवं लोथल नामक स्थानों में से उत्खनन के पश्चात प्राप्त हुई है.
पुरातत्व विभाग ने सिंधु घाटी क्षेत्र में 1922 ई. में स्व. आर.डी. बनर्जी की अध्यक्षता में उत्खनन का कार्य आरंभ किया था, और लखना जिले में मोहनजोदड़ो तथा लाहौर और मुल्तान के बीच हड़प्पा की खुदाई में एक विकसित सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए थे. उन्हें इसी प्रकार की सभ्यता का अज्ञान काठियावाड़ क्षेत्र के लोथल नामक स्थान जिला अहमदाबाद के सरदार वाला ग्राम के अंतर्गत 1954 ई. में एस. आर. राओ की अध्यक्षता में कराए गए. इस प्रकार की सभ्यता के अवशेष चानूदड़ो में भी प्राप्त हुए हैं.
इस सभ्यता का अनेक चरणों में विकास होता गया, जिसके प्रमाण अनेक भू- तलो की खुदाई में प्राप्त हुए हैं. जिनका काल विभाजन निम्न प्रकार से किया जा सकता है. इस सभ्यता का पूर्ण विकसित रूप सिंधु नदी के किनारे अनेक स्थलों से की गई खुदाई से प्राप्त हुआ है. इस कारण इस सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से पुकारा गया है.
- मिट्टी के बर्तनों से पूर्व की सभ्यता (जिसका काल तथा रूप ज्ञात नहीं है)
- कुयेटा सभ्यता — 3500 ई. पू. से 3000 ई. पू.
- अमरी – नुन्दरानाल सभ्यता — 3000 ई. पू. से 1800 ई. पू.
- क्षोभ सभ्यता — 4000 ई. पू. से 2500 ई. पू.
- कुल्ली मेंही सभ्यता -– 2800 ई. पू. से 2000 ई. पू.
- हड़प्पा सभ्यता — 2700 ई. पू. से 2000 ई. पू.
- हड़प्पा- मोहनजोदड़ो तथा लोथल सभ्यता -– 2200 ई. पू. से 1800 ई. पू.
- झुंकर तथा झांगर् सभ्यता — 1500 ई. पू.
इन स्थानों की खुदाई में रोचक कलात्मक सामग्री प्राप्त हुई है. जिसके आधार पर इस साल की चित्रकला के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है.
वैदिक काल की भित्ति चित्रकला
यूराल पर्वत से दक्षिण की ओर से तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य, आर्य जातिया यूरोप, पश्चिम एशिया तथा भारत की और देशांतर निवास हेतु आयी. इन जातियों ने एशिया तथा भारत पर अपना प्रभाव जमाना आरंभ कर दिया. भारतीय आर्य जाति ने ईसा से 2000 वर्ष पूर्व ईरानी-आर्य जाति से संबंध विच्छेद कर लिया, और भारतीय आर्य शाखा के लोग तुर्किस्तान (आधुनिक रूस) से अफगानिस्तान होकर भारत आए. यह लोग प्राचीर युक्त लकड़ी तथा मिट्टी के बने मकानों वाले गांवों में रहते थे. इस प्रकार सिंधु क्षेत्र पर विजय प्राप्त कर और सिंधु घाटी सभ्यता को समाप्त कर, यह जाति पूर्व की ओर बढ़ी, और 1400 ई. पूर्व से 1000 ई. पूर्व के मध्य संपूर्ण उत्तरी भारत पर इनका अधिकार हो गया.
इस काल का इतिहास स्पष्ट तो नहीं है, यह अस्पष्ट हैं. अतः इस काल की चित्रकला की प्रगति का ज्ञान साहित्यिक रचनाओं जैसे- वेदों, महाभारत, रामायण या पुराणों से प्राप्त कला प्रसंगों से प्राप्त किया जा सकता है. गौतम बुद्ध का जन्म चौथी शताब्दी ईसा पूर्व माना जाता है. उनके धर्म प्रचार के साथ-साथ कला विकास के भी बौद्ध साहित्य में उल्लेख प्राप्त होने लगते हैं. दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व तक वैदिक साहित्य की रचनाओं का काल समाप्त हो जाता है. और उनका स्थान बौद्ध धर्म ले लेता है. इस समय की कला चित्रकला के प्रमाण उपलब्ध नहीं है, और जो चित्र प्राप्त है वह साधारण स्तर के हैं. यह चित्र आज जोगीमारा की गुफा में ही प्राप्त है, अन्यथा इस काल की चित्रकला का अनुमान लगाने के लिए साहित्य प्रसंगों पर निर्भर रहना पड़ता है.
वैदिक काल तथा कला कि रोचक जानकारी
- पुरातत्व विभाग ने सिंधु घाटी क्षेत्र में 1922 ई. में स्व. आर.डी. बनर्जी की अध्यक्षता में उत्खनन का कार्य आरंभ किया था.
- वैदिक सभ्यता मे आर्यों का मुख्य व्यवसाय कृषि तथा पशुपालन था ।
- इस काल की चित्रकला की प्रगति का ज्ञान साहित्यिक रचनाओं जैसे- वेदों, महाभारत, रामायण या पुराणों से प्राप्त कला प्रसंगों से प्राप्त किया जा सकता है.
- मध्य प्रदेश के गुनजेरिया नामक ग्राम में तांबे के बने यंत्रों के 424 उदाहरण प्राप्त हुए हैं.
- प्रागैतिहासिक काल के समाप्त होने के बाद वैदिक काल का उदय होता है.
- इस सभ्यता की खोज का श्रेय सरजॉन मार्शल तथा डॉक्टर अरनेस्ट मैक को जाता है.
- मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सिंधु नदी की घाटी में स्थित थे, और यहां पर एक उच्च सभ्यता विकसित हुई, इस कारण उसको विद्वानों ने सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से पुकारा हैं.
FAQ
Q. सिंधु घाटी सभ्यता की खोज कब हुई?
A. मोहनजोदड़ो और हड़प्पा “सिंधु नदी की घाटी” में स्थित है, और यहां पर एक उच्च सभ्यता विकसित हुई. इसी कारण इसको विद्वानों ने सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से भी पुकारा है.
Q. भारत की प्रथम सभ्यता कौन सी थी?
A. प्रागैतिहासिक काल के समाप्त होने के बाद वैदिक काल का उदय होता है. वैदिक काल प्राचीन भारतीय संस्कृति का एक काल हैं.
Q. भारत में कुल कितनी सभ्यता है?
A. भारत मे 6 सभ्यता हैं
Q. वैदिक संस्कृति के संस्थापक कौन थे?
A. मैक्समूलर थे. आर्यों द्वारा निर्मित सभ्यता को ही वैदिक सभ्यता कहा जाता हैं. वैदिक सभ्यता विशाल रूप से उत्तरी भारत के मैदानों में फैली हुई थी.
Q. वैदिक काल को कितने भागों में बांटा गया है?
A. वैदिक काल को आसानी से समझा जा सके इसलिए इसे दो भागों में विभाजित किया है-
•ऋग्वैदिक या पूर्व वैदिक काल
•उत्तर वैदिक काल
Q. वैदिक सभ्यता का मुख्य व्यवसाय क्या था?
A. वैदिक सभ्यता मे आर्यों का मुख्य व्यवसाय कृषि तथा पशुपालन था.
इन्हें भी देखे
- वैदिक सभ्यता के बारे में अधिक जानकारी – “ Click here “
- प्रागैतिहासिक काल तथा कला – ” Click here “
- आदिकाल की चित्रकला – ” Click here “
- कला इतिहास (भारतीय चित्रकला, कला संस्कृति एवं सभ्यता) – ” Click here “