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मिस्र की सभ्यता और मिस्र का इतिहास क्या है?

मिस्र का इतिहास

मिस्र की सभ्यता नील नदी के नीचे  किनारे की अफ्रीका की एक प्राचीन सभ्यता थी। हीरोडोटस ने लिखा है कि- मिस्र की सभ्यता नील नदी का वरदान है। मिस्र की सभ्यता और मिस्र का इतिहास क्या है? मिस्र सभ्यता के लोगों का सीधा संबंध किसी भी आधुनिक मानव उपजाति (Races) के साथ नही जोड़ा जा सकता। लंदन विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध मानव विकास शास्त्रवेत्ता श्री पेरी (W.J perry) का मानना था की इस दुनियां पर मिस्र मे ही सबसे पहली सभ्यता सीखी। मिस्र की सभ्यता मे मिस्री लोगों ने कई अद्भुत आविष्कार किए इन मे सबसे आश्चर्यचकित आविष्कार पिरामिड है। इस सभ्यता में  सभी लोगों के अलग अलग धर्म,देवी,देवता व मंदिर थे।

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मिस्र की सभ्यता –

मिस्र की सभ्यता सर्वप्रथम संगठित सभ्यता(6000-2000)ई.पू तक जब सुमेर में सुमेरियन सभ्यता का विकास हो रहा था।उसी समय नील नदी की घाटी मिस्र(egypt)में मिस्र सभ्यता का विकास हो रहा था।हीरोडोटस ने लिखा है कि- मिस्र की सभ्यता नील नदी का वरदान है। नील नदी मिश्र के हृदय प्रांत में प्रवाहित होती है और लगभग 50 किलोमीटर चौड़े और 800 किलोमीटर लंबे भू-क्षेत्र को उर्वर बनाती है। इसी वजह से  नील नदी को मिस्र की सभ्यता की जन्म दात्री माना जाता है।लंदन विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध मानव विकास शास्त्रवेत्ता श्री पेरी (W.J perry) ने अपनी पुस्तक “सभ्यता का विकास” (The growth of civilization 1928) में विस्तार रूप से बताया है की प्राचीन पाषाण काल के मानव की स्थिति से नव पाषाण काल के मानव की स्थिति तक क्रमवार विकास स्थापना की और कला,मूर्तिकला चित्रकला,लेखनकला,ज्योतिष इत्यादि विकसित किया। ये वो ही लोग थे जिन्होंने संसार प्रसिद्ध “पिरामिड”(pyramid)समाधियां स्तूप बनाए थे।जो आज भी हम लोगों के लिए एक अद्भुत आश्चर्य को वस्तु बने केवल मिस्र में हुआ।मिस्र में ही भौगोलिक एवं प्राकृतिक ऐसी सुविधाये थी की वहां के लोगों ने सबसे पहले खेती का आविष्कार किया।मिस्र के लोगों ने ही सबसे पहले सुसंगठित समाज की हुए है। मिस्र और सुमेर का परस्पर संपर्क था।मिस्र के लोगों का रहन-सहन का ढंग, देवता और पूजा का ढंग एवं लिखने की कला,भाषा सुमेर के लोगों से मिलती जुलती थी। ये लोग लिखते तो थे इस प्रकार की चित्रलिपि लेकिन सुमेरियन चित्र लिपि (भाषा) से अलग और सुमेरियन लोगों की तरह मिट्टी की टाइल पर नहीं लेकिन पेपीरस रीड (papyrus Reed) पर पेपीरस एक छालदार पेड़ होता था,जो मिस्र की घाटी से उत्पन्न होता था। ये पेड़ आजकल मिस्र के केवल उत्तरी भाग मे कहीं पैदा होता है। इन्ही पेपीरस रीड पर लिखे हुए लेखों को मिस्र के लोगों के इतिहास,धर्म,रहन-सहन का पता लगता है। मिस्र के राजा सुमेरियन राजाओं की तरह “पुरोहित राजा” नही होते थे,लेकिन ये राजा खुद देवता की ही मूर्ति या देवताओं के वंशज माने जाते थे।ये शासक फराओ (pharaoh) कहलाते

मिस्र की सभ्यता की खोज-

 नेपोलियन बोनाफाइड ने मिस्र की सभ्यता की खोज की थी।1798 ईस्वी में मिश्र विजय के अभियान के चलते नील नदी पर स्थित रोजीटा स्थान से एक पत्थर का शिलालेख मिला था राजनीतिक जीवन भर शासन मिस्र का जो राजा रहता था उसे ‘फराओ’ कहा जाता था वहां के निवासी राजा को देवपुत्र (देवता के पुत्र)के रूप में देखते थे राजा का आदेश मात्र ही वहां के लोगों के लिए कानून था। मिस्र की स्थाई सेना में घोड़ों और गधों का महत्वपूर्ण स्थान था मिस्र का न्याय विधान उच्च कोटि का था अन्याय का सर्वोच्च अधिकारी  (सम्राट फराओ)  होता था वहां का दंड बहुत ज्यादा कठोर था।जिसने कम अपराध किया हो उसे आर्थिक दंड दिया जाता था और ज्यादा अपराध करने वाले को कठोर दंड दिया जाता था जो लोग झूठी गवाही देते थे उन्हें फांसी की सजा सुनाई जाती थी।

मिस्री लोगों द्वारा आविष्कार

मिस्र में जो कुछ था और आधुनिक मिस्र में जो कुछ भी है वहां की नील नदी की बदौलत नील नदी मिस्र का जीवन है। नील नदी में प्रतिदिन बाढ़ आया करती थी। प्राचीन मिस्र के लोगों ने नील नदी मे हर साल आने वाली बाढ़ का धीरे-धीरे निरक्षण करके,नहरों एवं बांधो द्वारा खेती की सिंचाई का आविष्कार किया। मिस्र के लोग लकड़ी का काम,पत्थर की घड़ाई का काम और स्थापत्य कला को अच्छी तरह से समझते थे।वे लोग सूत काटना और कपड़े बुनना भी जानते थे। सोना,तांबा,कांसा आदि धातुओं के उपयोग से परिचित थे ऐसा अनुमानलगाया जाता है की इन्ही लोगों ने कुर्सियों, कई प्रकार के बजने वाले यंत्रों, सुन्दर आभूषण एवं आभूषणों को रखने के लिए सुन्दर सुन्दर संदूको और कई प्रकार के प्रकाश दानों (lamps) का आविष्कार किया। समुंद्रो के ऊपर चलने वाले बड़े-बड़े जहाजों का आविष्कार करने वाला भी इन्हीं प्राचीन मिस्र के लोगों को माना जाता है। कम से कम तीन बड़ी चीजों के आविष्कार का श्रेय मिस्र के लोगों को ही जाता है।पहला- भाषा की वर्णमाला, दूसरा- सोरगणना के अनुसार सबसे पहला कैलेंडर बनाया। 365 दिनों का वर्ष काल माना गया,12 महीनों मे बांटा 30 दिन का एक महीना माना गया और बाकि 5 दिन साल के आखरी छुट्टी के माने गए।आकाश मंडल के तारों को मिस्र के लोगों ने अलग-अलग नक्षत्र (constellations) मे विभाजित किया और 12 राशियां स्थित की। तीसरा- मृत शरीर की ममी (mummies) बनाकर उनको हजारों वर्षों तक कायम रखा। ऐसा लगता है की मिस्र के लोगों के हाथों के काम में बहुत सफाई थी, जिस किसी चीज को बनाते थे उसे बहुत ही सुन्दर और पुरा बनाते थे। इन लोगों की बनाई पत्थर की मूर्तियों,राजाओं की समाधियां और उन समाधियों के ऊपर बड़े-बड़े स्तूप सुन्दर है। जो की आज भी संसार को आश्चर्यचकित किए हुए है।

मिस्र सभ्यता की मूर्तिकला  कुछ इस प्रकार की होती थी
मिस्र सभ्यता की मूर्तिकला कुछ इस प्रकार की होती थी

•मिस्र के स्तूप (पिरामिड)- (प्राचीन काल की सात अद्भुत वस्तुओं में से एक मिस्र का पिरामिड) मिस्र के लोगों का मृत्यु के विषय में अपना ही एक विश्वास था। वे सोचते थे कि मृत्युके बाद भी प्राणी को उसकी गहरी नींद से जगाया जा सकता है,और फिर से उनका जीवन चेतनमय बन सकता है।मृत्यु के विषय मे यह विश्वास से अलग था की मृत्यु के बाद जीव (प्राणी) नीचे अंधेरी दुनिया में चले जाते थे और वहां एक छायामय जीवन जीते है। मिस्र के लोगों का मृत्यु के संबध में ये विचार होने के कारण ही वहां पर सुंदर-सुंदर कब्र,कब्रों के अंदर मृत शरीर की ममी रखी जाती और कब्रों के ऊपर बड़े 2विशाल स्तूप बनाना जिससे मृत शरीरों को कोई छू ना सके, उन्हें कोई बिगड़ ना सके यह प्रथा चली। इन स्तूपों के अवशेष अब भी मिलते है। ये ममी कब्र पर स्तूप केवल राजाओं और रानियों के लिए ही बनते थे। साधारण लोगों को तो मामूली कब्रों में ही दफना दिया जाता था। प्रत्येक पिरामिड के पास ही फराओ का मंदिर है जिस फेरो पर पिरामिड है ये मंदिर स्तम्भो (pillars) के आधार पर स्थित छत स्थापत्य कला की इस शैली में से ही एक शैली विकसित हुई जिसके अनुसार बाद में ग्रीस के मंदिर बने। •ममी (mummies)- मृत शरीर को कई भागों मे से चीरकर उसके हृदय,मस्तिक को छोटे से यंत्र द्वारा निकल लिया जाता था और शरीर के अंदर के भागों को कई दवाइयों एवं सुगंधित पदार्थ से साफ किया जाता था और धोया जाता था, फिर उसमें सोने की धातु और अनेक सुगंधित पदार्थ भरकर उसे ठोस बना दिया जाता था। मानों वह राजा की ही प्रतिमूर्ति हो इस प्रकार मृत शरीर की ममी बनाकर श्रेष्ठ लकड़ी या धातु के बने हुए कफन (संदूक) मे ममी रख दी जाती थी।

मिस्र में ममी को रखने के किए इस तरह के संदूक बनाए जाते थे
मिस्र में ममी को रखने के किए इस तरह के संदूक बनाए जाते थे

मिस्र के लोगों का धर्म,मंदिर और देवता-

मिस्र के इन लोगों की आरंभ मे कई स्वंतत्र जातियां थी। प्रत्येक जाति का अपना अपना एक अलग देवता होते थे। लोगों की ऐसी कल्पना थी की इन देवताओं का धड़ मानव शरीर जैसा होता था।जैसे  किसी देवता का मुंह बन्दर जैसा होता था, तो किसी का हिप्पोपोटामस (Hippotamus) किसी का बाज का,किसी का बिल्ली का इन देवताओं की खुशी और नाराजगी पर ही लोगों का सुख-दुख निर्भर करता था-एवं उनको खुश रखने के लिए पूजा की जाती थी। अलग अलग जातियों में लड़ाई होते होते ऐसा अनुमान है की सन् 4300 ई.पू तक मिस्र में केवल दो जातियों रह गई थी और समस्त मिस्र प्रदेश केवल दो राज्यों मे विभाजित हो गया था।उत्तरी मिस्र और दक्षिणी मिस्र। उत्तरी मिस्र में उस जाति का राज्य था जिसका देवता (Totem) सर्प (Uraens) था।दक्षिणी मिस्र में शासन करने वाली जाति का देवता (Totem)होरस (Falcon God) था बाद में उत्तर एवं दक्षिण मिस्र के दोनों राज्य मिलकर एक संयुक्त राज्य बन गए।उत्तर और दक्षिण मिस्र संयुक्त राज्य का प्रथम शासक मेनी (menes) था। इस प्रकार शासन क्षेत्र मे परिवर्तन के साथ-साथ राज्य धर्म में परिवर्तन हुआ और एक राज्य की स्थापना होते ही केवल एक देवता का अधिपात्य होगया। इस देवता का नाम “रे” देवता (सूर्य देवता) था और इसी “रे” देवता को सर्वोपरि देवता माना जाता था।इस “रे” देवता के कई अन्य नाम भी थे जैसे-आतन,ओसिरीस,ताह,आमन इत्यादि। यही देवता मिस्र को धन-धान्य एवं समृद्धि देना वाले थे। मिस्र के शासकों में इस सर्वोपरी देवता की मान्यता बढ़ गई लेकिन साधारण लोग का विश्वास तो उन पुराने अलग-अलग देवताओं मे ही बना रहा। मिस्र के फिरो अपने आपको “रे”(सूर्य) देवता मानते थे – और वे सूर्यवंशी कहलाते थे। दक्षिण मिस्र का एक प्रमुख देवता चन्द्र था और अनेक शासक अपने आपको चन्द्रवंशी मानते थे। प्राचीन मिस्र काल मे ज्ञान,विद्या,साहित्य,इतिहास के केन्द्र के ये मंदिर थे। मिस्र के एक प्रसिद्ध फेरो (इखनातन या अमेनोफिस चतुर्थ)ने जिसका शासन काल १३७५ 1375 ई.पू  से शुरु हुआ माना जाता है। लोगों का धार्मिक विश्वास में परिवर्तन करने का प्रयास किया उसने यह घोषित किया की फेरो देवताओं के वंशज नही लेकिन साधारण लोगों की तरह मानवी लोग ही है।इसमें अपने पूर्वजों की प्राचीन राजधानी थीबीज (मिस्र में) को छोड़ दिया और नई राजधानी बसाई जिसका नाम तलअल -अमरना था। इसने सब राज्यों मे अलग अलग देवताओं के मंदिर को बंद करवा कर केवल एक देवता आतन की पूजा करना चाहा आतन (Aton) सूर्य का दूसरा नाम था।

मिस्र की सभ्यता समाज का विभाजन-

 प्राचीन काल में मिश्र का समाज तीन रूप में बांटा गया था प्रथम उच्च वर्ग,दूसरा मध्य वर्ग,तीसरा निम्न वर्ग था। 

  • उच्च वर्ग- जिसमें सम्राट सामंत जमींदार पुरोहित राज्य के उच्च पदाधिकारी आदि आते थे वैभव एवं ऐश्वर्य से परिपूर्ण रहता था इनका जीवन समाज में इनको विशेष सम्मान प्राप्त होता था राजमहलो और विशाल भवनों में शान शौकत से रहते थे।
  •  मध्यवर्ग- जिसमें व्यापारी बुद्धिजीवी शिल्पी एवं लिपिक आते थे समाज में इनके जीवन का स्तर भी अच्छा था और इन्हें भी समाज में आदर एवं सम्मान प्राप्त था।
  •  निम्न वर्ग- जिसमें किसान मजदूर दास तथा निर्धन लोग शामिल थे इस वर्ग की दशा चिंतनीय थी तथा इनका जीवन स्तर निम्न कोटि का था। किसानों को जमीन प्राप्त नहीं थी जमींदारों के द्वारा किसानों का शोषण किया जाता था मजदूरों और दासो की दशा बहुत बुरी थी इस वर्ग के लोगों पर अत्याचार किए जाते थे मिश्र के बड़े-बड़े पिरामिड का निर्माण दासो द्वारा ही किया गया था।

  मिस्र की सभ्यता का रहन-सहन व खानपान-

मिस्र की सभ्यता का रहन-सहन व खानपान रहन -सहन बहुत अच्छा था उच्च वर्ग के लोग आलीशान महलों में रहते थे और निम्न वर्ग के लोग कच्चे मकानों में रहते थे स्त्रियों और पुरुष दोनों ही आभूषण पहनते थे मिस्र की स्त्रियां सिंगार करती थी अनेक प्रकार के सौंदर्य सजने सवरने का प्रयोग करती थी यहां के लोग मांसाहारी और शाकाहारी दोनों थे गेहूं और चावल फल दूध दही शाकाहारी भोजन था और मांसाहारी में सूअर मछली के मांस का प्रयोग करते थे ऐसा माना जाता है कि यहां के लोग मदिरापान भी करते थे। इन्हें समाज में आदर व सम्मान प्राप्त था उन्हें राजनीतिक अधिकार भी प्राप्त थे परिवार की सभी जमीन धन संपत्ति व पर स्त्रियों का ही अधिकार होता था यहां पर स्त्रियां पुरुषों पर शासन करती थी यहां पर एक विवाह करने की प्रथा थी किंतु राजा धनवान लोग एक से अधिक विवाह भी कर सकते थे। सेवाइन कहते हैं कि- सेवाइन कहते हैं कि- मिस्र में नारी का जो सम्मान करते थे उसकी समानता प्राचीन सभ्यताओं में कोई दूसरी सभ्यता नहीं कर सकती थी। मिस्र के राजनीतिक इतिहास को तीन भागों में बांटा गया है-

  • 3400 ई पू से 2500 ई पू तक (पिरामिड युग)
  •  2500 ई पू से 1800 ई पू तक ( सामंतशाही युग)
  • 1580 ई पू से 1150 ई पू तक ( नवीन साम्राज्य)

इन्हें भी देखें-

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