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सिंधु घाटी सभ्यता की कला – चित्रकला Sindhu ghati sabhyta ki kala

सिंधु घाटी सभ्यता की कला ( 3500 ई. पू. से 2500 ई. पू. तक) 

चीन से लेकर मध्य एशिया तक और भारत में ईसा से चार हजार वर्ष पूर्व से लेकर ईसा से तीन हजार वर्ष पूर्व के मध्य एक सभ्यता का जन्म हुआ था. सिंधु घाटी सभ्यता की कला – चित्रकला – इस सभ्यता की खोज का श्रेय सरजॉन मार्शल तथा डॉ.अर्नेस्ट मेंक को जाता है. उन्होंने सन् 1924 ई. में इस सभ्यता का संसार को ज्ञान कराया था. और इस विशाल क्षेत्र में लाल तथा काली पकाई मिट्टी के बर्तन बनाने की कला का विशेष विकास हुआ था. यह बर्तन पशु पक्षियों की आकृतियों, मानव आकृतियों तथा ज्यामितिक आकारों के अभिप्रायों से अलंकृत किए जाते थे. तथा पुरातत्व विभाग ने इस सभ्यता को मरण पात्रों की सभ्यता के नाम से भी पुकारा है. भारत तथा पाकिस्तान में इस प्रकार की सामग्री मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, चानुदडो, झांगर्, झुकर, कुल्ली, तथा लोथल नामक स्थानों में खुदाई के पश्चात प्राप्त हुई है.

Art of Indus Valley Civilization – Painting in English – ” Click here “

सिंधु घाटी सभ्यता की कला - चित्रकला
सिंधु घाटी सभ्यता की कला

पुरातत्व विभाग ने उस समय सिंधु घाटी क्षेत्र में सन् 1922 ई. में स्वर्गवास आर. डी.बनर्जी की अध्यक्षता में खुदाई कार्य आरंभ किया था और लरखना जिले में मोहनजोदड़ो तथा लाहौर और मुल्तान के बीच हड़प्पा की खुदाई में एक विकसित सभ्यता के अवशेष इन्हे प्राप्त हुए थे , और फिर से इसी प्रकार की सभ्यता का ज्ञान काठियावाड़ क्षेत्र के लोथल नामक स्थान जिला अहमदाबाद के सर्गावाला ग्राम के अंतर्गत 1954 ई. में एस.आर. राव की अध्यक्षता में कराए गए पुरातत्व विभागीय खुदाई कार्य से प्राप्त हुआ है . इस प्रकार की सभ्यता के अवशेष चानूदड़ो मे भी प्राप्त हुए गए हैं.

सिंधु क्षेत्र की समृद्धि फारस के सम्राट अच्छेयनिद् (पांचवी श. ई. पू.) तक बनी रही थी. सिकंदर महान ने भी भारत पर आक्रमण करते समय इस भाग को हरा भरा पाया था. यहां के भवन अवशेषों की ठोस तथा ऊंची आधारशिलाए इस बात का प्रमाण है, कि क्षेत्र में सिंधु नदी की बाढ़ से क्षति होने का भय बराबर बना रहता था. राजस्थान में पीलीवंगन तथा कालीवंगन की खुदाई में भी इसी प्रकार की प्राचीन सभ्यता के प्रमाण स्वरूप अनेक पात्र भी मिले गए हैं.

काल विभाजन

पूरे भारतवर्ष में प्रागैतिहासिक कृषक जातियां उत्तरी बलूचिस्तान में सिंध तक 4000 ई. पू. तक बस चुकी थी. यह कृषक जातियां काली तथा लाल मिट्टी के बर्तन बनाती थी. यह सभी बर्तन सरल तथा आसान ढंग के रंगीन आलेखनों से सजाए जाते थे. और इन सभी आलेखनों की चित्रकारी आदिम शैली की है. आरंभिक कृषक सभ्यता के स्थलों के उत्खनन में दाष्ट्रिक कलाओं के अवशेष प्राप्त नहीं हुए हैं. कृषक सभ्यता के चिन्ह इस क्षेत्र में जगह-जगह पर प्राप्त हुए हैं. इस सभ्यता का अनेक चरणों में विकास होता गया था. जिसके प्रमाण अनेक भू- तलो की खुदाई से प्राप्त हुए हैं, और जिनका काल विभाजन निम्न प्रकार से किया जा सकता है. इस सभ्यता का अच्छे से पूर्ण विकसित रूप सिंधु नदी के किनारे अनेक स्थानों से की गई खुदाई से प्राप्त हुआ है. इस कारण इस सभ्यता को सिंधु घाटी की सभ्यता के नाम से भी पुकारा गया है.

  1. मिट्टी के बर्तनों से पूर्व की सभ्यता ( जिसका काल तथा रूप अनिश्चित है) 
  2. कुयेटा सभ्यता (3500 ई. पू. से 3000 ई. पू.)
  3. अमरी  नून्दरानाल सभ्यता (3000 ई. पू. से 1800 ई. पू.)
  4. झोब सभ्यता ( 4000 ई. पू. से 2500 ई. पू  )
  5. कुल्ली मेही सभ्यता ( 2800 ई. पू. से 2000 ) 
  6. हड़प्पा सभ्यता ( 2700 ई. पू. से 2000 ई. पू.)
  7. हड़प्पा- मोहनजोदड़ो तथा लोथल सभ्यता ( 2200 ई. पू. से 1800 ई. पू.)
  8. झुंगर तथा झांगर सभ्यता ( 1500 ई. पू.)

उपरोक्त सभी सभ्यताओं का नाम उन स्थानों पर दिया गया है, जहां इन सभ्यताओं के चिन्ह पाए गए हैं. इन सभी स्थानों की खुदाई में रोचक कलात्मक सामग्री भी प्राप्त हुई है. जिसके आधार पर इस काल की चित्रकला के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है.

सिंधु घाटी सभ्यता की कला - चित्रकला
कला

कुयेटा सभ्यता की कला

इस सभ्यता में सर अयूरैल स्टिन को कुयेटा क्षेत्र में वजीरिस्तान तथा उत्तरी बलूचिस्तान की खुदाई में कुछ पकाई आई हुई मिट्टी के सिर प्राप्त हुए थे. सन् 1950 से सन् 1951 ईस्वी के मध्य फिर से अमेरिकी पुरातत्व विभाग तथा पाकिस्तानी पुरातत्व विभाग का एक सामूहिक दल प्राचीन सभ्यता के अध्ययन के लिए कुयेटापिशीन तथा झोब लोरलाई  क्षेत्र में गया. इस दल के लिए इस सभ्यता के अध्ययन के लिए कुयेटापिशीन तथाझोब लोरलाई क्षेत्र में गया. इन्हें इस सभ्यता से संबंधित पर्याप्त कला सामग्री प्राप्त हुई. यहां पर ऊपर के तल मे एसी मूर्तिया मिली जो झोब मूर्तियों से अलग है. और जिसमें माथे के ऊपर शंकु आकार के निकले हुए अलंकरण बनाये गए है. मूर्तियों के सिर काले रंगे हुए हैं तथा सिर पर सादा ढंग का टायरा (शृंगार पट्टी) बनाई गई है.

अमरी  नून्दरानाल सभ्यता की कला

अमरी, गाजीशाह, पिंडी, वही, लोहरी तथा शाहसन की खुदाई में अनेक आभूषणों के खंड भी प्राप्त हुए हैं.

झोब सभ्यता की कला

उत्तरी बलूचिस्तान में झोब नदी की घाटी में प्राप्त मिट्टी के बर्तन गहरे बैंगनी लाल रंग के हैं, झोब में पकाई हुई मिट्टी की अनेक मूर्तियां प्राप्त हुई है. इन मृन्य मुर्तियों के रूप में भारत की राष्ट्र कला के प्रारंभिक उदाहरण प्राप्त होते हैं. यहां पर पशुओं तथा स्त्रियों की छोटी मोटी मरण मूर्तियां भी प्राप्त हुई है. झोब क्षेत्र के अंतर्गत अनेक स्थानों पर प्राप्त कुबडदार सांडों की मूर्तियां प्रधान है. लेकिन ये मूर्तियां संख्या में कम है. यहां पर प्राप्त सांडों की मूर्तियां कुल्ली में प्राप्त सांडों की मूर्तियों के समान ही है. उनकी शारीरिक गठन में  मांसलता और गठनशीलता लाने का भी अधिक प्रयास किया गया है. एक सिर रहित सांड की मूर्ति अग्रभाग से पूछ तक 8 इंच लंबी है. इसके पैर बहुत छोटे हैं परंतु इसकी बनावट में गठनशीलता है. इस मूर्ति का स्वस्थ्य शरीरिक गठन पर्याप्त संतोषजनक ही दिखाई पड़ता है.

कुल्ली मेही सभ्यता की कला

मकरान क्षेत्र में सागर के समीपस्थ स्थित भाग में भी झोब की समकालीन सभ्यता के चिन्ह प्राप्त हुए हैं. कुल्ली क्षेत्र में पशु तथा स्त्रियों के अनेक मूर्तियां प्राप्त हुई है, जो कि एक ही प्रकार की हैं. कुल्ली के कूबड़दार सांडों की आकृतियों में आकर्षण नहीं है, क्योंकि धारियों के द्वारा रंगों से चित्रित इनके शरीर के रंग फीके और धुंधले पड़ गए हैं. और इन सांडो के नेत्रों तथा सिंगो के निचले भाग तथा गर्दन को भी रंगीन धारियों से सजाया गया था. और पशुओं की यह रंगीन मूर्तियां नुन्दरानाल के बर्तनों पर अंकित सांडों की आकृतियों की याद दिलाती है.

मोहनजोदड़ो सभ्यता की कला

मोहनजोदड़ो में समाधियाँ, तालाब, स्नानागार तथा दो मंजिला मकानों के अवशेष प्राप्त हुए हैं. यह नगर योजनाबद्ध ढंग से बनाया गया था. और सीधे मार्गों के दोनों और गहरी नालियां तथा प्रकाश स्तम्भ भी बनाए गए थे. इस नगर की समृद्धि कृषि तथा व्यापार पर ही निर्भर करती थी. मोहनजोदड़ो में सूती कपड़ों के टुकड़े, करघे, आभूषण जैसे – हार, अंगूठियां, छल्ले, पकाई मिट्टी, काँसे तथा तांबे के बने हुए थे. यहां युद्ध के हत्यारों में तीर कमान, भाले, कुल्हाड़िया, छुरे, हसिये, छेनिया, उस्तरे आदि भी प्राप्त हुए हैं, जो कि काँसे तथा तांबे के बने हैं. और यहां पर मिट्टी को पकाकर बनाई गई मोहरे भी प्राप्त हुई है. जिन पर कई प्रकार के चित्र बने गए हैं. जैसे – भैंसे, भेड़े, गैंडे, वृषभ,सुअर आदि पशुओं की आकृतियों के साथ ही लिपि चिन्ह भी अंकित किए गए हैं.

हड़प्पा सभ्यता की कला

हड़प्पा की खुदाई में जो तीन सहस्त्र वर्ष प्राचीन योजनाबद्ध नगर प्राप्त हुआ, उसमें अनाज भंडार, स्नानागार के अवशेष तथा अन्य सामग्री भी प्राप्त हुई. वह सभी मोहनजोदड़ो से प्राप्त सामग्री के समान ही है. हड़प्पा में लाल पत्थर की बनी एक मनुष्य के धड़ की मूर्ति प्राप्त हुई हैं, जो 3.3/ 4 इंच ऊंची है. वह कला आलोचकों के लिए आश्चर्य का विषय भी है. यह प्रतिभा राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली में सुरक्षित रखी गई है. इसका निर्माण का समय 2500 ई. पू. से 2000 ई. पू. के मध्य का लगता है.

झुंकर तथा झांगर सभ्यता की कला

झुंकर सभ्यता के अवशेष मोहनजोदड़ो से 80 मील दक्षिण में नवाबशाह जिले के अंतर्गत सिंध में चानूदडो में प्राप्त हुए हैं. यहां पर मिट्टी की अनेक मूर्तियां प्राप्त हुई है. इन अवशेषों का परिचय 1932 ई. में सबसे पहले श्री एन. जी. मजूमदार ने पुरातत्व वेत्ताओ को कराया था. इसी स्थल पर बाद में दूसरी जाति आकर रहने लगी. जो भूरे रंग के मिट्टी के बर्तन बनाती थी. इस जाति की सभ्यता को झांगर सभ्यता के नाम से पुकारा गया है. झांगर में पकाई हुई मिट्टी की अनेक रोचक मूर्तियां प्राप्त हुई है, जिनसे प्रतीत होता है कि सिंधु नदी की घाटी के विभिन्न क्षेत्र में रहने वाले लोग एक निजी सभ्यता का विकास कर चुके थे.


FAQ

Q. सिंधु घाटी की सभ्यता कब शुरू हुई?

A. सिंधु घाटी सभ्यता की कला ( 3500 ई. पू. से 2500 ई. पू. तक) 

Q. हड़प्पा सभ्यता के सर्वोत्तम कलाकृति क्या है?

A. हड़प्पा की खुदाई में जो तीन सहस्त्र वर्ष प्राचीन योजनाबद्ध नगर प्राप्त हुआ, उसमें अनाज भंडार, स्नानागार के अवशेष तथा अन्य सामग्री भी प्राप्त हुई. वह सभी मोहनजोदड़ो से प्राप्त सामग्री के समान ही है. हड़प्पा में लाल पत्थर की बनी एक मनुष्य के धड़ की मूर्ति प्राप्त हुई हैं.

Q. सिंधु घाटी सभ्यता के खोजकर्ता कौन थे?

A. सभ्यता की खोज का श्रेय सरजॉन मार्शल तथा डॉ.अर्नेस्ट मेंक को जाता है. उन्होंने सन् 1924 ई. में इस सभ्यता का संसार को ज्ञान कराया था.

Q. विश्व की सबसे बड़ी सभ्यता कौन सी है?

A. सिंधु घाटी सभ्यता माना जाता है.

Q. मोहनजोदड़ो सभ्यता की कला क्या है? 

A. मोहनजोदड़ो में समाधियाँ, तालाब, स्नानागार तथा दो मंजिला मकानों के अवशेष प्राप्त हुए हैं. यह नगर योजनाबद्ध ढंग से बनाया गया था. और सीधे मार्गों के दोनों और गहरी नालियां तथा प्रकाश स्तम्भ भी बनाए गए थे. इस नगर की समृद्धि कृषि तथा व्यापार पर ही निर्भर करती थी. मोहनजोदड़ो में सूती कपड़ों के टुकड़े, करघे, आभूषण जैसे – हार, अंगूठियां, छल्ले, पकाई मिट्टी, काँसे तथा तांबे के बने हुए थे.

Q. कुयेटा सभ्यता की कला क्या है? 

A. यहां पर ऊपर के तल मे एसी मूर्तिया मिली जो झोब मूर्तियों से अलग है. और जिसमें माथे के ऊपर शंकु आकार के निकले हुए अलंकरण बनाये गए है. मूर्तियों के सिर काले रंगे हुए हैं तथा सिर पर सादा ढंग का टायरा (शृंगार पट्टी) बनाई गई है.

Q. झुंकर तथा झांगर सभ्यता की कला क्या हैं? 

A. झुंकर सभ्यता के अवशेष मोहनजोदड़ो से 80 मील दक्षिण में नवाबशाह जिले के अंतर्गत सिंध में चानूदडो में प्राप्त हुए हैं. यहां पर मिट्टी की अनेक मूर्तियां प्राप्त हुई है. इन अवशेषों का परिचय 1932 ई. में सबसे पहले श्री एन. जी. मजूमदार ने पुरातत्व वेत्ताओ को कराया था.


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