बौद्ध काल की चित्रकला का परिचय
आज हम आपको बौद्ध काल की चित्रकला के बारे में बताएंगे. Buddhist period art history in hindi – ईसवी शताब्दी के प्रारंभ के साथ “प्राचीन काल” की भारतीय कला के इतिहास में स्वर्ण युग आरंभ होता दिखाई पड़ता है. इस समय बौद्ध धर्म भी अपना प्रभाव स्थापित कर रहा था, और जनता भी बौद्ध धर्म को ग्रहण कर रही थी. बौद्ध धर्म की यह उन्नति और व्यापकता सातवीं ईसवी शताब्दी तक अच्छे से चलती रही. इस समय तक ब्राह्मण धर्म पुनः उन्नति को प्राप्त नहीं कर पाया था, और इस समय भारत पूर्व देशों में एक समृद्धशाली देश था. और भारत की ज्ञान तथा विज्ञान की ज्योति पूरे एशिया को प्रकाशित कर रही थी. पूरे एशिया देश धार्मिक प्रेरणा और ज्ञान प्राप्ति के लिए बौद्ध-भारत की ओर दृष्टि लगाए हुए थे. इस समय पूरे भारतवर्ष में पवित्र तीर्थ कौशल के दर्शन हेतु दूर-दूर से बड़ी संख्या में पर्यटक आते थे, और भगवान बुद्ध के उपदेश समस्त पूर्वी देशों में अपनाए जा रहे थे. इस समय की चित्रकला का ज्ञान तथा दर्शन बहुत ही गहराई से दिखाया पड़ता है. बौद्ध धर्म का पूर्वी देशों जैसे श्रीलंका, नेपाल, जावा, श्यामा, ब्रह्मा, तिब्बत, जापान और चीन की कला पर बहुत अधिक रूप से प्रभाव पड़ा है. इन सब देशों की चित्रकला, मूर्तिकला एवं वास्तुकला के अवशेष इस बात का प्रमाण देते हैं.
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बौद्ध धर्म की चित्रकला
तारानाथ सोलवीं शताब्दी का तिब्बत इतिहासकार था. तारानाथ ने उल्लेख किया है कि जहां जहां बौद्ध धर्म फैला था, वहां वहां दक्ष चित्रकार पाए गए हैं. यह बात विशेष रूप से भारतवर्ष की चित्रकला में देखी जा सकती है. बहुत सुंदर कलाकृतियां काल के गाल में समा गई है, इसका मतलब है बहुत चित्रकला ऐसी है जो अब नष्ट हो चुकी है. फिर भी बौद्ध, भगवत तथा शैल कलाकारों की कुछ समुचित कृतियां, कलाकारों की निपुणता तथा कारीगरी की दक्षता की गाथा को छुपाए आज भी अच्छी अवस्था में प्राप्त है. जो कि अभी तक सही सलामत रखी हुई है. इन्ही कलादक्ष शिल्पियों ने चित्रकला की एक विशेष शैली स्थापित की है. बौद्ध धर्म की कला शैली का विकास बहुत ही स्वाभाविक ढंग से हुआ था. बौद्ध धर्म विशेष रूप से चित्रात्मक ही है.
लगभग 200 ई. पूर्व आरंभिक समय में बौद्ध धर्म के अंतर्गत महात्मा बुद्ध की छवियों या मूर्तियों का निर्माण नहीं किया गया. धर्म प्रचार या बुद्ध के अस्तित्व को दर्शित करने के लिए उनके प्रतीक के रूप में छत्र, मुकुट, पगड़ी, चरण पादुका, बौद्ध वृक्ष, धर्मचक्र या सिंहासन आदि के अंकन की प्रथा प्रचलित हो गई थी, परंतु बौद्ध की छवि अंकित नहीं की गई थी. Buddhist period history in hindi.
बौद्ध चित्रकला कहां कहां दिखाई पड़ी है
- गांधार शैली
- अजंता की गुफ़ाएँ
- बाघ गुफ़ाएँ
- बादामी की गुफ़ाएँ
- सित्तननवासल की गुफा
- सिगिरिया की गुफ़ाएँ
गांधार शैली में बौद्ध की छवि का प्रचलन
कुषाण राज्य में कनिष्क के सम्राट बनते ही महायान (विकासवादी पंथ) बौद्ध धर्म का प्रारंभ हुआ. इसके कारण भगवान बुद्ध की छवियां, मूर्तियां तथा चित्र के रूप में अंकित की जाने लगी. और बुद्ध के अंकन पर कोई धार्मिक प्रतिबंध नहीं रहा. कनिष्क काल में ही बुद्ध की मूर्तियां बनवाई गई थी. इस प्रकार की मूर्तियाँ पेशावर, रावलपिंडी, तक्षशिला आदि क्षेत्रों में बनाई गई और यह सारे क्षेत्र गांधार राज्य की सीमा के अंतर्गत ही आते थे, इसलिए इस शैली को गांधार की शैली के नाम से पुकारा गया है. इन मूर्तियों का विषय भारतीय-बौद्ध है लेकिन शैली पर यूनानी तथा रोमन छाप है. इन कलाकारों ने बुद्ध के जीवन से संबंधित कथा तथा जातक कथा पर आधारित ही मूर्तियां बनाई थी, और इन मूर्तियों में बुद्ध की मुद्राएं भारतीय है, जैसे – अभय मुद्रा, ज्ञान मुद्रा, ध्यान मुद्रा या धर्म चक्र प्रवर्तन मुद्रा आदि. परंतु इन मूर्तियों में वस्त्र वेशभूषा तथा अलंकरण विदेशी है. बुद्ध ने तपस्या से पहले अपने बाल काट दिए थे परंतु गांधार शैली के विदेशी कलाकारों की “तपस्या में लीन बुद्ध की प्रतिमा” में घुंघराले बाल दिखाई देते हैं. इस शैली का प्रसार मध्य एशिया तक हुआ था. Boudh kaal ki chitrakala in hindi.
अजंता की गुफाएं में बौद्ध की कला का प्रचलन
अजंता महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है. अजंता की प्रत्येक गुफा में मूर्तियों, स्तंभ तथा द्वार काटकर भित्तियों (दीवारो) पर चित्रकारी की गई है. अजंता की गुफाएं वास्तुकला, मूर्तिकला तथा चित्रकला का बहुत अच्छा संगम है. अजंता के अधिकतर चित्रों का विषय बौद्ध धर्म से ही संबंधित है. इन चित्रों में बुद्ध के विभिन्न चित्र और पवित्र धर्म चिन्ह सम्मिलित है. इसके साथ ही बुद्ध की जन्म-जन्मांतर की जीवन कथाएं तथा जातक कथाएं इन गुफाओं की चित्रकारी का प्रमुख विषय है. जातक कथाओं के अंतर्गत बुद्ध के अनेकों पूर्व जन्मों की कथाएं हैं, जिनका चित्रकार ने बहुत सुंदरता से अंकन किया है. ये जातक कथाओं के ही चित्र है इस बात को दो आधार पर जाना जा सकता है, पहला – इन चित्रों पर जातक कथा का नाम लिखा है, परंतु चित्रों के नष्ट हो जाने से चित्र को पहचानने में असुविधा होती है. और दूसरा- दसवीं गुफा में पड़दंत हाथी की जातक कथा तथा अन्य जातक कथाओं को उनके घटनाक्रम के अनुसार अंकन एवं उनकी विशेषताओं के कारण पहचाना जा सकता है. अजंता की गुफा में बुद्ध जन्म के चित्रों को भी दर्शाया गया है.
बाघ गुफ़ाएँ
बाघ गुफाएं प्राचीन ग्वालियर रियासत में विंध्याचल पर्वत श्रेणी में स्थित थी, परंतु स्वतंत्रता प्राप्त होने के पश्चात ये गुफाएं मध्य प्रदेश के अंतर्गत आ गई है. वहां के लोग इन गुफाओं को पंच पांडव नाम से भी पुकारते हैं. बाघ गुफाओं में बुद्ध के चित्र भी अंकित है, इनमें दिखाई पड़ता है की 4 हाथी और 3 घुड़सवार अन्य स्थान तक आ गए हैं, हाथी विश्राम करने के लिए बैठ गए हैं, यहां पर 2 पैदल आदमी है जिनके हाथ में तलवार है. इन सबका ध्यान सामने के भवन पर केंद्रित है. पास में आम के वृक्ष से नीला कपड़ा लटका है और नीचे जल पात्र तथा धर्म चक्र दर्शाए गए हैं. इसके निकट एक केले का वृक्ष भी ह, जिसके नीचे बुद्ध बैठे हुए हैं, और एक शिष्य को उपदेश देते हुए अंकित है. छठी गुफा में गौतम बुद्ध के अनेकों चित्र हैं, जिनमें ” बुद्ध” का सुंदर चित्र अवशेष मात्र रह गया है. Boudh kal ki chitrakala ka itihas.
बादमी की गुफ़ाएँ
बादामी की गुफाएं बीजापुर जिले के अंतर्गत आईहोल के निकट कर्नाटक प्रांत में स्थित है. बादामी के चार गुफा मंदिरों में शिल्प तथा चित्रकला के उत्तम उदाहरण सुरक्षित है. बादामी की गुफाओं में भी कई जगह बौद्ध के चित्र अंकन है.
सित्तननवासल की गुफा
सित्तननवासल की गुफा दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के अंतर्गत तंजौर के निकट पद्दुकोट्टाइ में स्थित है. सित्तननवासल गुफा जैन मंदिर है. यह मंदिर एक चट्टान को काटकर बनाया गया है. पहले इस गुफा मंदिर बहुत से चित्र अलंकृत थे, परंतु अब चित्र केवल छत में तथा स्तंभों के ऊपरी भागों में शेष रह गए हैं. सित्तननवासल के चित्रों की शैली अजंता के समान ही है. यहां पर एक सरोवर का दृश्य है, जिसमें कमल पुष्प खिले हैं. इस सरोवर के बीच में एक मछली, हाथी, हंस तथा 3 दिव्य व्यक्ति की आकृतियां चित्रित है. और यह तीनो हाथों में कमल धारण किए हैं.
सिगिरिया की गुफ़ाएँ
भारतीय बौद्ध भिक्षु धर्म के प्रचार के लिए सुदूर पूर्वी तथा दक्षिणी देशों की ओर गए, और उनके साथ ही भारतीय चित्रकारी, धर्म तथा दर्शन आदि भी उन देशों में पहुंचा. श्रीलंका में भी इसी प्रकार भारत की अजंता शैली की चित्रकला इन्हीं धर्म प्रचारकों के साथ पहुंची. श्रीलंका में सिगिरिया नामक गुफा में अजंता की चित्र शैली के दर्शन होते हैं. इसी प्रकार यहां पर बौद्ध के चित्र भी अंकित है.
बौद्ध काल की चित्रकला के अन्य प्रमाण
- गुप्त राजाओं की शक्ति और साम्राज्य के विस्तार के साथ साहित्य और कला का भी विकास हुआ. गुप्त राजाओं ने बौद्ध धर्म के लिए किसी प्रकार की रोक नहीं लगाई, परंतु कलाकार ने बौद्ध धर्म के महायान और हीनयान संप्रदायों के आपसी झगड़ों के कारण बौद्ध धर्म को बहुत हानि पहुंची.
- कपिलवस्तु मैं एक स्थान पर एक पवित्र धारणा का अंकन था, जिसमें बुद्ध स्वेत गज की पीठ पर बैठे अपनी मां के गर्भ में प्रवेश करते अंकित किए गए थे.
- चित्रकला के कुछ प्रमाण मुसलमानों के आक्रमणों से उत्पन्न बर्बादी के कारण पूरी तरह नष्ट हो गए हैं.
- कुछ चित्र जो कठोर चट्टानों के ऊपर बने थे वह नष्ट नहीं हो सके.
- अजंता के कुछ चित्रों में लकड़ी के चौखटे की चौहदी बनाकर उसको पलस्तर से भरकर धरातल तैयार करके भी चित्र बनाए गए हैं. इस प्रकार की प्रथा अन्य स्थानों पर भी प्रचलित रही होगी, परंतु लकड़ी के नष्ट हो जाने से चित्र नष्ट हो गए होंगे.
- इन सभी उदाहरणों से प्रतीत होता है कि उस समय के कलाकार अच्छे भवन विशेषज्ञ और अच्छे कलाकार थे, जो कि दिव्य शक्तियों से संपन्न थे.
FAQ section
Q. बौद्ध काल की चित्रकला का इतिहास क्या है?
Ans. ईसवी शताब्दी के प्रारंभ के साथ “प्राचीन काल” की भारतीय कला के इतिहास में स्वर्ण युग आरंभ होता दिखाई पड़ता है. इस समय बौद्ध धर्म भी अपना प्रभाव स्थापित कर रहा था, और जनता भी बौद्ध धर्म को ग्रहण कर रही थी.ईसवी शताब्दी के प्रारंभ के साथ “प्राचीन काल” की भारतीय कला के इतिहास में स्वर्ण युग आरंभ होता दिखाई पड़ता है. इस समय बौद्ध धर्म भी अपना प्रभाव स्थापित कर रहा था, और जनता भी बौद्ध धर्म को ग्रहण कर रही थी.
Q. बौद्ध काल की चित्रकला क्या हैं?
Ans. जहां जहां बौद्ध धर्म फैला था, वहां वहां दक्ष चित्रकार पाए गए हैं. यह बात विशेष रूप से भारतवर्ष की चित्रकला में देखी जा सकती है. बहुत सुंदर कलाकृतियां काल के गाल में समा गई है, इसका मतलब है बहुत चित्रकला ऐसी है जो अब नष्ट हो चुकी है. फिर भी बौद्ध, भगवत तथा शैल कलाकारों की कुछ समुचित कृतियां, कलाकारों की निपुणता तथा कारीगरी की दक्षता की गाथा को छुपाए आज भी अच्छी अवस्था में प्राप्त है. जो कि अभी तक सही सलामत रखी हुई है.
Q. बौद्ध चित्रकला कहां कहां है?
Ans. गांधार शैली, अजंता की गुफ़ाएँ , बाघ गुफ़ाएँ , बादामी की गुफ़ाएँ , सित्तननवासल की गुफा, सिगिरिया की गुफ़ाएँ.
Q. अजंता की गुफाएं में बौद्ध की कला कैसी है?
Ans. अजंता महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है. अजंता की प्रत्येक गुफा में मूर्तियों, स्तंभ तथा द्वार काटकर भित्तियों (दीवारो) पर चित्रकारी की गई है. अजंता की गुफाएं वास्तुकला, मूर्तिकला तथा चित्रकला का बहुत अच्छा संगम है. अजंता के अधिकतर चित्रों का विषय बौद्ध धर्म से ही संबंधित है. इन चित्रों में बुद्ध के विभिन्न चित्र और पवित्र धर्म चिन्ह सम्मिलित है. इसके साथ ही बुद्ध की जन्म-जन्मांतर की जीवन कथाएं तथा जातक कथाएं इन गुफाओं की चित्रकारी का प्रमुख विषय है.
Q. गांधार शैली क्या है?
Ans. कुषाण राज्य में कनिष्क के सम्राट बनते ही महायान (विकासवादी पंथ) बौद्ध धर्म का प्रारंभ हुआ. इसके कारण भगवान बुद्ध की छवियां, मूर्तियां तथा चित्र के रूप में अंकित की जाने लगी. और बुद्ध के अंकन पर कोई धार्मिक प्रतिबंध नहीं रहा. कनिष्क काल में ही बुद्ध की मूर्तियां बनवाई गई थी. इस प्रकार की मूर्तियाँ पेशावर, रावलपिंडी, तक्षशिला आदि क्षेत्रों में बनाई गई और यह सारे क्षेत्र गांधार राज्य की सीमा के अंतर्गत ही आते थे, इसलिए इस शैली को गांधार की शैली के नाम से पुकारा गया है. इन मूर्तियों का विषय भारतीय-बौद्ध है लेकिन शैली पर यूनानी तथा रोमन छाप है.
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