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परमहंस योगानंद योगी कौन थे -जीवन परिचय

 परमहंस योगानंद (योगी)

बीसवी सदी के महान संत और गुरुदेव के रूप मे मशहूर परमहंस योगानंद के लिए नियति ने पहले से ही मनुष्य जीवन में उनकी क्या भूमिका होगी, परमहंस योगानंद योगी कौन थे -जीवन परिचय क्या थाl गोरखपुर उत्तर प्रदेश के एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में मुकुंद लाल घोष के रूप में जन्मे योगानंद के माता-पिता महान क्रिया योगी लाहिड़ी महाशय के शिष्य थेl परमहंस योगानंद महान विभूतियों में से एक थे, जो भारत का सच्चा वैवभ रहे हैंl लोग उन्हें ईश्वर का अवतार मानते थे l अपनी जन्मजात सिद्ध व चमत्कारिक शक्तियों के माध्यम से उन्हें अनगिनत लोगों के जीवन में खुशियां भर दी l लाखों की संख्या में देश और विदेश में लोग उनके अनुयायी बनेl

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परमहंस योगानंद (योगी) कौन थे -जीवन परिचय
परमहंस योगानंद (योगी)
  • जन्म – 5 जनवरी, 1893 ईसवी
  • स्थान – गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
  • मृत्यु – 7 मार्च 1952
  • पिता – भगवती चरण घोष
  • गुरु – श्री युक्तेश्वर जी

परमहंस योगानंद जी का जन्म

परमहंस योगानंद जी का जन्म 5 जनवरी 1893 को गोरखपुर उत्तर प्रदेश में हुआl वह एक अध्यात्मिक गुरु, योगी और संत थेl उन्होंने अपने अनुयायियों को क्रियायोग उपदेश दिए तथा सभी जगह पूरे विश्व में उसका प्रचार प्रसार कियाl उनका वास्तविक नाम मुकुंद लाल घोष थाl इनके पिता का नाम भगवती चरण घोष थाl वह बंगाल नागपुर रेलवे बी.एन.आर.में उपाध्यक्ष के समकक्ष पद पर कार्यरत थेl योगानंद के माता-पिता के 8 बच्चे थे, चार भाई चार बहनl योगानंद भाइयों में दूसरे तथा सभी में चौथे संतान थेl उनके माता-पिता बंगाली क्षेत्रीय थेl दोनों ही संत प्रकृति के थेl उनका परिवार इनके बाल्य काल के दौरान अनेक शहरों में रहेl गोरखपुर में इनके जीवन के पहले 8 वर्ष व्यतीत हुए थेl

ईश्वर को जानने और खोजने की लालसा योगानंद जी को बचपन से ही थीl

योगानंद जी का भक्ति और ईश्वर में विश्वास

ईश्वर में श्रद्धा कोई भी चमत्कार कर सकती है, केवल एक को छोड़कर अध्ययन के बिना परीक्षा में उत्तीर्ण होनाl परमहंस योगानंद जी दक्षिणेश्वर के काली मंदिर अपने गुरु के साथ गए थेl वहां काली काली मां और शिव जी की मूर्ति अति कौशल से निर्मित चांदी के चमत्कार सहस्त्रदल कमल पर विराजमान है, उन्होंने वहां ईश्वर के मातृत्व पक्ष या ऐश्वर्या करुणा के माधुर्य को जाना, उन्हें वह पृथ्वी पर स्वर्ग के साक्षात देवताओं के प्रतिरूप लगा l साकार, सगुण ईश्वर और निराकार, निर्गुण ब्रह्मा के मतों का संयोग प्राचीन उपलब्धि है, जिसका प्रतिपादन वेदों और भगवत गीता में किया गया हैl परस्पर विरोधी विचारों का यह मिलाप ह्रदय और बुद्धि दोनों को ही संतुष्ट करता हैl भक्ति और ज्ञान मूलतः एक ही हैl प्रापत्ति (ईश्वर में आश्रय लेना) और शरणागति (ईश्वरीय अनुकंपा के प्रति समर्पण भाव) सर्वोच्च ज्ञान के पद हैंl  उन्होंने सदा ही जगजननी माता को उनके साथ खेलते पायाl संतों की विनर्मता इस बात से उपजती है कि वह ईश्वर पर निर्भर है, जो एकमात्र विधाता हैl ईश्वर का स्वरूप ही आनंद है, आनंद उन सब चीजों में सर्वप्रथम और सर्वोपरि है जिनके लिए आत्मा और इच्छाशक्ति तड़पती हैl

योगानंद जी के जीवन के कुछ किस्से

हिमालय की ओर जाना

हिमालय पर जाने के लिए उन्होंने अपने सहपाठी अमर  की सहायता ली, उन्होंने उनसे कहा कि तुम कोई भी छोटा मोटा बहाना बनाकर अपनी कक्षा से बाहर निकल आना और एक घोड़ा गाड़ी किराए पर ले लो और हमारी गली में ऐसी जगह आकर ठहरना जहां तुम्हें घर का कोई सदस्य ना देखेंl उन्होंने हिमालय जाने के लिए अगला दिन तय किया, अनंत दा(भाई) उन पर कड़ी नजर रखते थे, क्योकि उन्हें संदेह था कि योगी के मन में भाग जाने की प्रबल इच्छा हैl  योगी को आशा थी कि हिमालय में वे गुरु उन्हें मिल जाएंगे, जिनका चेहरा उन्हें अंतर्मन के दिव्य दर्शनों में दिखाई देता थाl वह दोनों घोड़ा गाड़ी में बैठ कर बाजार की ओर गए, वहां से यूरोपियन पोशाक पहन कर निकले ताकि लोग उन्हें पहचान ना सकेl फिर स्टेशन से ट्रेन के टिकट लेकर वह निकल पड़ेl उन्हें 10 वर्ष तक लाहिड़ी महाशय के पास रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआl बनारस में उनका घर योगी का रात्रिकालीन तीर्थ स्थान थाl लाहिड़ी महाशय ने जो भी चमत्कार किए, उन सब में एक बात स्पष्ट थी कि उन्होंने अहम तत्व को कभी भी स्वयं को कारण तत्व या कर्ता नहीं मानने दियाl सर्वोच्च रोग निवारक शक्ति अर्थात ईश्वर के प्रति पूर्ण आत्मसमर्पण के कारण गुरुदेव उस शक्ति को अपने में से मुक्त रूप से प्रभावित होना सुलभ बना देते थेl मैं संस्कृत का विद्वान कभी नहीं बना, केवल आनंद जी ने मुझे उससे भी दिव्य भाषा पड़ा दी थीl

कश्मीर यात्रा

श्री युक्तेश्वर जी ने योगी के ठीक हो जाने के बाद कहा कि तुम यात्रा करने योग स्वस्थ हो गए हो अब हम कश्मीर चलेंगेl उसी दिन शाम को छह लोग का उनका दल उत्तर की ओर जाने के लिए गाड़ी पर सवार हो गया, उनका पहला पड़ाव शिमला में हुआ l वह सड़कों पर घूमे l वहां एक वृद्धा चिल्ला रही थी, स्ट्रॉबेरी ले लोl अपरिचित फलों को देखकर गुरुदेव का कौतूहल जागा, उन्होंने टोकरी भर कर फल खरीद लिया और पास ही खड़े कन्हाई और योगी दोनों को दिएl योगी ने फल खाकर देखा परंतु थूक दिया, कहा कि गुरुदेव जी ये कितना खट्टा है मुझे स्ट्रॉबेरी अच्छी नहीं लगीl तब गुरुदेव जी ने कहा अमेरिका में तुम्हें यह अच्छी लगेगी, वहां एक रात्रि भोजन में जिसके घर तुम खाना खा रहे होंगे, उस घर की ग्रहणी तुम्हें मलाई और शक्कर के साथ स्ट्रॉबेरी देगी, जब वह कांटे से  कुचलकर स्ट्राबेरी तुम्हें देगी तब कहोगे कितनी स्वादिष्ट हैl तब तुम्हें शिमला में आज का दिन याद आएगाl गुरू जी की भविष्यवाणी योगी के दिमाग से निकल गई थी, परंतु जब अमेरिका जाने पर उन्हें याद आ गई, जब वे अमेरिका गए तब उन्हें श्रीमती एलसी टी.  के घर में एक रात्रि भोजन पर निमंत्रित किया गया, वहा वही सब कुछ हुआ जो गुरुदेव जी ने उनसे कहा थाl

योगानंद जी की मृत्यु

ईश्वर प्राप्त योगी अपने भौतिक शरीर का आकस्मिक रूप से त्याग नहीं करतेl उनको पृथ्वी से अपने महाप्रयाण के समय का पूर्ण ज्ञान होता हैl उन्होंने अपने मृत्यु की भाभी सूचना संकेतों में अपने अनुयायियों को दे दी थी, उन्हें अपनी मृत्यु का पूर्व ज्ञान हो गया थाl 7 मार्च 1952 को जब अमेरिका में योगानंद जी का भाषण था, जिसमे योगानंद जी ने अपने देश भारत की महिमा तथा यहाँ की सुख सुबिधा का वखान कियाl और वही योगानंद जी आसमान मे देखते हुए गिर गएl परमहंस योगानंद परम शांति पूर्ण चिर निद्रा में सो गए और वह समाधि मे विलीन हो गए l उनका पार्थिव शरीर आज भी फॉरेस्ट लॉन मेमोरियल पार्क, लॉस एंजेलिस में अस्थायी रूप से रखा हुआ हैl एक धर्म आध्यात्मिक संकल्प, ईश्वर के लिए समर्पित संपूर्ण जीवन, पूर्व और पश्चिम के बीच एक सजीव सेतु– यह विशेषताएं परमहंस योगानंद के जीवन व कार्य की थीl

इन्हें भी देखें-

  • योगानंद परमहंस -” Click here
  • डॉ. भीमराव अंबेडकर जीवन परिचय – Click here
  • आर्यभट्ट जीवन परिचय –Click here

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