You are currently viewing आर्यभट्ट भारत के महान खगोलशास्त्री, आर्यभट्ट जीवनी 2022, जन्म, मृत्यु और रचनाएँ

आर्यभट्ट भारत के महान खगोलशास्त्री, आर्यभट्ट जीवनी 2022, जन्म, मृत्यु और रचनाएँ

आर्यभट्ट भारत के महान खगोलशास्त्री, आर्यभट्ट जीवनी 2022, जन्म, मृत्यु और रचनाएँ

आर्यभट की गिनती भारत के महान खगोल वैज्ञानिक मे की जाती है। उन्होंने उस वक्त ब्रह्माण्ड के रहस्यो को दुनिया मे सामने रखा, जब पूरी दुनिया ठीक से गिनती गिनना भी नही सीख पाया था। आर्यभट्ट भारत के महान खगोलशास्त्री, आर्यभट्ट जीवनी 2022, जन्म, मृत्यु और रचनाएँ. यही कारण है की जब भारत सरकार ने 19 अप्रैल 1975 को, जब उन्होंने अपना पहला कृत्रिम उपग्रह लॉन्च किया, तो उन्होंने इसका नाम “आर्यभट्ट” रखा। कुछ लोग आर्यभट्ट को “आर्यभट्ट” के रूप में भी लिखते हैं, लेकिन यह गलत है। उनका असली नाम “आर्यभट्ट” है। भट शब्द का अर्थ है “योद्धा”।

 Aryabhata Biography  English – “Click here

आर्यभट्ट भारत के महान खगोलशास्त्री, आर्यभट्ट जीवनी 2022, जन्म, मृत्यु और रचनाएँ
आर्यभट(476-550)

जन्म –476 ई. मृत्यु – 550 ई.

आर्यभट का प्रारंभिक जीवन

कुछ विद्वानों का मत है की आर्यभट का जन्म कुसुमपुर मे हुआ था। कुसुमपुर को पाटलिपुत्र (अब पटना) का एक नगर माना जाता है। जबकि कुछ विद्वान पाटलिपुत्र को ही कुसुमपुर के रुप मे मानते है। इस भ्रम का यह कारण है की आर्यभट ने अपनी पुस्तक मे अपने बारे मे कोई भी जानकारी नही दी। उन्होंने लिखा है की कलयुग के 3600 वर्ष बीत चुके है और मेरी आयु (उम्र) 23 वर्ष है। भारतीय काल गणना के अनुसार कलयुग का आरंभ ईसा 3101 मे माना जाता है। इस तरह से आर्यभट का रचना काल 499 ईसवी पर ठहरता है। इस प्रकार आर्यभट का जन्म 476 मे हुआ था, ज्यादातर विद्वान आर्यभट का जन्म स्थान केरल मानते है क्योंकि आर्यभट द्वारा रचित ग्रंथ ‘आर्यभटिय’ के अधिकांश भाषा दक्षिण भारत और विशेषकर केरल मे रचे गए। इससे यह बात साफ होती है की आर्यभट का जन्म केरल मे ही हुआ था।

आर्यभट की शिक्षा-

आर्यभट उच्च शिक्षा के लिए कुसुमपुर गए और वहां पर काफी समय बिताया। भास्कर प्रथम (629ई) ने कुसुमपुर की  पहचान पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) के रुप मे की है। उस समय इसके राज्य का नाम मगध था और इसकी राजधानी थी पाटलिपुत्र। उस समय पाटलिपुत्र में नालन्दा विश्वविद्यालय स्थापित था। उस अध्ययन का एक विश्वविख्यात केंद्र था। आर्यभट की रचना की, जो कालांतर मे बहुत प्रसिद्ध हुईं। 

आर्यभट की रचनाएं- 

ऐसा माना जाता है की आर्यभट ने संस्कृत भाषा मे तीन ग्रंथो की रचना की। इसके नाम है दशगीतिका, आर्यभट, और तंत्र। लेकिन आज इस ग्रंथ के 34 श्लोक ही उपलब्ध है। आर्यभट के मुख्य ग्रंथ का नाम ‘आर्यभटिय’ (कुछ लोग इसे ‘आर्यभटीयम’ भी कहते है) यह ग्रंथ केन्द्रित है। इसमे वर्गमूल,धनमूल, सामानान्तर श्रेणी तथा विभिन्न प्रकार के समीकरणों का वर्णन किया गया है। आर्यभाटिय प्राचीन भारत की एक महत्वपूर्ण कृति है। आर्यभट ने इसे संस्कृत के श्लोको के रुप मे लिखा है। संस्कृत भाषा मे रचित इस पुस्तक मे गणित और खगोल विज्ञान से संबधित क्रांतिकारी सूत्र दिए। पुस्तक में कुल 121 श्लोक हैं। इनको चार खंडों में बांटा गया है। इन खंडों के नाम है गीतिकापाद, गणितपाद, कालक्रियापाद एवं गोलपाद.

  • गीतिकापाद :- आर्यभटिय के चारों खंडों में यह सबसे छोटा भाग है। इसमें कुल 13 श्लोक हैं। इस खण्ड का पहला श्लोक मंगलाचरण है। यह तथा इस खण्ड के 9 अन्य श्लोक गीतिका छंद में हैं। इसलिए इस खण्ड को गीतिकापाद कहा गया है।
  • गणितपाद:- इस खण्ड मे गणित की चर्चा की गई हैं। इसमें कुल 33 श्लोक हैं। यह खण्ड अंकगणित, बीजगणित, एवं रेखागणित से संबधित है।
  • कालक्रियापाद:- कालक्रियापाद का अर्थ है काल गणना। इस खण्ड में श्लोक हैं। यह खण्ड खगोल विज्ञान पर केंद्रित है। इसमें काल एव वृत का विभाजन, सौर वर्ष, चंद्र मास, नक्षत्र दिवस, अंतवर्शी मास, गतियों का वर्णन है।
  • गोलपाद:- यह आर्यभट का सबसे वृहद एवं महत्वपूर्ण खण्ड है। इस खण्ड मे कुल 50 श्लोक है। इस खण्ड के अंतर्गत एक खगोलिय गोले में ग्रहीय गतियों के निरूपण की विधि समझाई गई है।  आर्यभट कहते है की पृथ्वी ब्रह्मांड का केंद्र है और अपनी जगह पर घूमती है। वस्तुत आर्यभट पहले भारतीय खगोल विज्ञानी थे।

आर्यभट एवं खगोल विज्ञान

आर्यभट एक विलक्षण वैज्ञानिक थे। उन्होंने बिना दूरबीन आदि के आकाश का अध्ययन करके खगोल विज्ञान के ऐसे महत्वपूर्ण सूत्र बताए।

1.पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है: उस समय यह मान्यता प्रचलित थी कि पृथ्वी स्थिर है और समस्त खगोल इसकी परिक्रमा करता है। आर्यभट ने अपने अध्ययन से पाया  की यह सिद्धान्त गलत है। उन्होंने कहा कि पृथ्वी गोल है, वह अपनी धुरी पर चक्कर लगाती है, इसी वजह से हमे गोल घूमती हुई दिखाई देती हैं

2. आकाशीय पिंडो का काल: आर्यभट ने अपने अनुभव से स्थिर तारों के सापेक्ष पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमने का काल बता दिया था। उन्होंने बताया कि पृथ्वी 23 घंटो 56 मिनिट और 4.1 सेकेंड मे अपना एक चक्कर लगाती है। जबकि पृथ्वी का वास्तविक घूमने का समय 23 घंटे 56 मिनिट और 4.091 सेकंड है। यह समय आर्यभट द्वारा निकाले गए मान के लगभग बराबर ही है। इसी प्रकार आर्यभट ने बताया कि 1 वर्ष 365 दिन ,6 घंटे ,12 मिनिट और 30 सेकेंड का होता है।

आर्यभट की विरासत

आर्यभट की उनके समकालीन तथा पराव्रती खगोलज्ञ ने तीव्र आलोचना की। आर्यभट द्वारा पृथ्वी की घूमने की गति को निकालने के लिए युग को चार बराबर भागों मे विभाजित करने के कारण खगोल वैज्ञानिक ब्रह्मगुप्त ने उनकी आलोचना की। लेकिन उन्होंने यह माना कि चंद्रमा और पृथ्वी की छायाओ के कारण ही ग्रहण होते है। आर्यभट के प्रमुख शिष्यों मे पाणडुरंगस्वामी, लाटदेव, प्रभाकर एवं नि:शंकु के नाम शामिल हैं। आर्यभट और उनके सिद्धांतो के आधार पर उनके अनुयायियो द्वारा बनाया गया तिथि गणना पंचांग भारत मे काफ़ी लोकप्रिय रहा है। उनकी गणनाओ के आधार पर सन 1073 में ‘जलाली’ पत्र तैयार किया, जो की आज ईरान और अफगानिस्तान में राष्ट्रीय कैलेंडर के रुप में प्रयोग लाया जाता है। आर्यभट के गणितय एवं खगोलीय योगदान को दृष्टिगत रखते हुए भारत के प्रथम उपग्रह को उनका नाम दिया गया। यही नहीं, चंद्रमा पर खड्ड का नामकरण तथा इसरो के वैज्ञानिक द्वारा 2009 में खोजे गए बैक्टेरिया (बेसिलस आर्यभट) का नामकरण भी उनके नाम पर किए गया है। उनके सम्मान में नैनीताल के निकट आर्यभट प्रेक्षण विज्ञान अनुसंधान संस्थान (Aryabhata Research Institute of Observational  science. ARIES ) की स्थापना की गई है। जिसमें खगोल विज्ञान भौतिक और वायुमंडलीय विज्ञान पर अनुसंधान कार्य किए जाते हैं। इससे उनके कार्यों की महत्ता स्वयसिद्ध हो जाती है। 

इन्हें भी देखें-

आर्यभट्ट के बारे में अधिक जानने के लिए – “Click here

महात्मा गांधी जीवन परिचय -“Click here

अब्राहम लिंकन का जीवनपरिचय– “Click here

Leave a Reply