गांधार शैली क्या है
कुषाण राज्य में कनिष्क के सम्राट बनते ही महायान बौद्ध धर्म का प्रारंभ हुआ. Gandhara art in hindi – इसके फलस्वरुप भगवान बुद्ध की छबिया मूर्ति या चित्र के रूप में अंकित की जाने लगी, और बुद्ध के अंकन पर कोई धार्मिक प्रबंध न रहा. कनिष्क काल में बुद्ध की मूर्तियां बनवाई गई और इन मूर्तियों की शैली यूनानी अधिक थी. इस प्रकार की मूर्तियां पेशावर, रावलपिंडी, तक्षशिला आदि क्षेत्रों में बनाई गई. यह क्षेत्र गांधार राज्य की सीमा के अंतर्गत थे, इसलिए इस शैली को गांधार शैली के नाम से पुकारा गया है.
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गांधार शैली में बुद्ध की छवि का प्रचलन
इन मूर्तियां का विषय भारतीय बौद्ध है परंतु शैली पर यूनानी तथा रोमन छाप है. इन कलाकारों ने बुद्ध के जीवन से संबंधित कथाओं तथा जातक कथाओं पर आधारित मूर्तियां बनाई. इन मूर्तियों में बुद्ध की मुद्राएं भारतीय है जैसे अभय मुद्रा, ज्ञान मुद्रा, ध्यान मुद्रा या धर्म चक्र प्रवर्तन मुद्रा आदि. किंतु इन मूर्तियों में वस्त्र वेशभूषा तथा अलंकरण विदेशी हैं. बुद्ध ने तपस्या से पूर्व अपने बाल काट दिए थे. परंतु गांधार शैली के विदेशी कलाकारों ने तपस्या में लीन बुद्ध की प्रतिमा में भी घुंघराले बाल दिखाएं हैं. इन मूर्तियों में आध्यात्मिकता की भावना नहीं दिखाई पड़ती है. बुद्ध की मुख्य मुद्राएं या तो पर्याप्त कठोर है या बहुत अधिक मधुर युक्त है. इस कला शैली के माध्यम से उन्नत पश्चिम सीमांत प्रदेश में बौद्ध धर्म का व्यापक रूप से प्रचार हुआ. अनेक विद्वानों का मत है कि गंधार मूर्ति शैली चित्रकला से प्रेरित होकर ही जन्मी है. इस शैली का प्रसार मध्य एशिया तक हुआ. गुप्त वंश के उदय से भारतीय इतिहास के स्वर्ण युग का उदय हुआ था.
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गुप्त वंश (275 – 520 ई.)
गुप्त वंश की स्थापना राजा श्री गुप्त ने की थी, जिसका काल 275 – 300 ई के मध्य निश्चित किया गया है. उसके पश्चात उसका पुत्र घटोत्कच गुप्त और उसके उपरांत चंद्रगुप्त प्रथम शासक बने. सम्राट चंद्रगुप्त ने गुप्त संवत चलाया, जिसका प्रारंभ 26 फरवरी 320 ई. को हुआ. उसके बाद विजय सम्राट समुद्रगुप्त और राम गुप्त के बाद चंद्रगुप्त द्वितीय गुप्त राज्य के शासक बने रहे. यह शासक हिंदू धर्म के अनुयाई थे परंतु बौद्ध धर्म के प्रति उदार थे. गुप्त सम्राट साहित्य प्रेमी, कला तथा शिल्पानुरागी सम्राट थे तथा वह स्वयम कलाओं में निपुण थे. वास्तु तथा शिल्प के क्षेत्र में गुप्त युग बहुत महान था .इस युग की कला शास्त्रीय विधान पर आधारित है. अजंता की श्रेष्ठ कृतियां इस काल में बनाई गई.
बौद्ध कला का प्रचार
बौद्ध धर्म का प्रचार तूलिका की भावना के आधार पर ही अधिक हुआ. लेखी और लेखनी का महत्व बाद में आया. इस धर्म की मूल्य परंपराएं चित्रात्मक है. जैसे-जैसे जनता में बौद्ध धर्म के प्रति जिज्ञासा बढ़ती गई, वैसे-वैसे बौद्ध श्रमणों ने कला को धर्म प्रचार हेतु अपनाया. बौद्ध भिक्षुओं के दल दूर स्थान में धर्म प्रचार के लिए गए. उन्होंने बुद्ध के उपदेशों का प्रचार किया और चित्रकला को धर्म प्रचार का माध्यम बनाया. लंबे-लंबे पट चित्रों को जिनमें बुद्ध की जीवनी और उपदेश अंकित रहते थे और बौद्ध साधु सुगमता से लंबी यात्रा में मोड़कर ले जा सकते थे. इस कारण तिब्बत, चीन तथा जापान में गौतम बुद्ध के धर्म जीवन तथा ज्ञान का प्रसार करने के लिए भिक्षुओं के द्वारा पट चित्र बहुत अधिक प्रयोग किए गए.
तिब्बत तथा नेपाल के मंदिरों में प्राप्त ‘थानका’ नामक चित्रित झंडे पट चित्र का ही एक रूप है. कला की सांकेतिक एवं रूप प्रदान भाषा विभिन्न जातियों के लोगों से भावों के आदान-प्रदान का एक स्वाभाविक साधन थी, इस समय और दूसरे प्रचार साधन संभव भी नहीं थे. चीन देश में बौद्ध धर्म के प्रति अत्यधिक श्रद्धा, आस्था, आदर तथा सम्मान की भावना उत्पन्न हुई, और 67 ई के पश्चात एक भारतीय भिक्षु कश्यप भादुंग चीन के सम्राट मिंगटि की प्रार्थना पर सुदूरपूर्व तक गया. उसके साथ में बहुत सी कलाकृतियां थी जिनमें चित्र भी थे. इस तरह की कलाकृतियां चीन के कलाकारों की बनाई हुई प्रतीत होती है. इस प्रकार की विशेषताएं अपने उत्कृष्ट रूप में अजंता, बदामी तथा बाग के भित्ति चित्रों में विद्यमान है.
समय के क्रूर प्रहारों से अगणित कलाकृतियों की क्षति या हानि हुई, फिर भी भारत में इस समय की भित्ति चित्रकार के उदाहरण प्राप्त हुए हैं. इन चित्रों में बौद्ध काल की समस्त विशेषताएं हैं और इस काल को कला का एक रितिवादी संस्थान माना जा सकता है. जिस प्रकार भारत बौद्ध धर्म के प्रवर्तक बुद्ध की जन्म भूमि है उसी प्रकार यह भी निश्चित है कि भारत बौद्ध धर्म से संबंधित चित्रकला का भी उद्गम स्थल है. बौद्ध मत के अनुयायियों तथा चैत्यों के प्रबंधकों ने श्रेष्ठ कलाकारों को संरक्षण प्रदान किया. अजंता की भव्य चित्रकार में इस कला शैली की उन्नति तथा विकास की क्रमिक प्रगति स्पष्ट दिखाई पड़ती है. इन चित्रावलियों में इस काल की आरंभिक और अंतिम दोनों चरणों की कला दिखाई पड़ती है.
FAQ Section
Q. गांधार शैली की विशेषताएं क्या है?
Ans. गांधार कला शैली में बुद्ध की मूर्तियों को बहुत सुंदर बनाने का प्रयास किया गया है. मूर्तियों में बुद्ध को घुंघराले बाल, सर के पीछे प्रभामंडल, सलवट युक्त वस्त्र और चप्पल पहने हुए बहुत सुंदर दर्शाया गया है.
Q. गांधार शैली क्या है?
Ans. गांधार कला शैली एक प्रसिद्ध प्राचीन भारतीय कला है. और इस कला का उल्लेख वैदिक साहित्य में मिलता है. गांधार शैली में बुद्ध की प्रतिमाओं का वर्णन किया गया है.
Q. गांधार कला क्यों प्रसिद्ध है?
Ans. गांधार कला की विषय वस्तु भारतीय थी, परंतु कला शैली यूनानी और रोमन थी. और इनमें बौद्ध की प्रतिमा का वर्णन बहुत ही सुंदर भाव से किया गया है.
Q. भारत में गांधार कला कहां-कहां है?
Ans. भारत में गांधार कला अजंता की गुफाओं में, बाघ, बदामी तथा सित्तनवासल के चित्रों में भी दिखाई देती है.
इन्हें भी देखें
बौद्ध काल की चित्रकला (गुफामंदिरों की चित्रकला – 50 ई. से 700 ईसवी तक) – ” Click here “
सिंधु घाटी सभ्यता की कला – चित्रकला – ” Click here “
जोगीमारा की गुफा और चित्रकला – ” Click here “