आरती का अर्थ –
आरती को ‘ आरात्रिका ‘ अथवा ‘ आरार्तिक ‘ और ‘ नीराजन ‘ भी कहते हैं । आरती क्या है और कैसे करनी चाहिये ?Aarti kaise karni chahiye – पूजा के अन्त में आरती की जाती है । पूजन में जो त्रुटि रह जाती है , आरती से उसकी पूर्ति होती है । स्कन्दपुराण में कहा गया है : आरती कैसे करें
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् पूजन हरेः ।
सर्व सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे ।।
पूजन मन्त्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी नीराजन ( आरती ) कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है । Bhagwan ki Aarti kaise karni chahiye आरती में पहले मूलमन्त्र ( भगवान् या जिस देवता का जिस मन्त्र से पूजन किया गया हो , उस मन्त्र ) के द्वारा तीन बार पुष्पांजलि देनी चाहिये और ढोल, नगारे , शंख, घड़ियाल आदि महावाद्यों की ध्वनि तथा जय-जयकार के शब्द के साथ शुद्ध बर्तन में घृत से या कपूर से विषम संख्या की अनेक बत्तियां जलाकर आरती करनी चाहिए । आरती कैसे होती हैं ? Aarti kaise hoti hai
ततश्च मूलमन्त्रेण दत्वा पुष्पांजलित्रयम् ।
महानीराजनं कुर्यान्महावाद्यजयस्वनैः ।।
प्रज्वलयेत् तदर्थ च कर्पूरेण घृतेन वा
आरार्तिक शुभे पात्र विषमानेकवर्तिकम ।।
साधारणतः पाँच बत्तियों से आरती की जाती है , इसे ‘ पंचप्रदीप ‘ भी कहते हैं । एक , सात या उससे भी अधिक बत्तियों से आरती की जाती है । कुंकुम , अगर , कपूर , चन्दन , रुई और घी , धूप की एक, पाँच या सात बत्तियाँ बनाकर, शंख , घण्टा आदि बाजे बजाते हुए आरती करनी चाहिए । आरती कैसे घुमानी चाहिए आरती के पाँच अंग होते हैं । प्रथम दीपमाला के द्वारा , दूसरे जलयुक्त शंख से , तीसरे धुले हुए वस्त्र से , चौथे आम और पीपल आदि के पत्तों से और पाँचवें साष्टांग दण्डवत् से आरती करें । आरती कैसे उतारते है? आरती उतारते समय सर्वप्रथम भगवान् की प्रतिमा के चरणों में उसे चार बार घुमायें, दो बार नाभिदेश में , एक ॐ बार मुखमण्डल पर और सात बार समस्त अंगों पर घुमायें । यथार्थ आरती पूजन के आखरी में ॐ इष्टदेव की प्रसन्नता के हेतु की जाती है । इसमें इष्टदेव को दीपक दिखाने के स्तवन तथा गुणगान किया जाता है । आरती कैसे की जाती है? Aarti kaise ki jati hai
पंडित प्रदीप मिश्रा जीवन परिचय – ” Click here “
चक्षुर्द सर्व लोकानां तिमिरस्य निवारणं ।
आर्तिक्यं कल्पित भक्त्यां गृहाण परमेश्वरः ।।
आरती के बाद बोले जानें वाले मंत्र (Mantra)
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या च द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वम् मम देवदेवं।।
ॐ भूर्भुवः स्वः । तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ।आरती करने का सही तरीका क्या है ?
मंगलम भगवान् विष्णु
मंगलम गरुड़ध्वजः |
मंगलम पुन्डरी काक्षो
मंगलायतनो हरि ||
सर्व मंगल मांग्लयै शिवे सर्वार्थ साधिके |
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते ||
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव |
जिब्हे पिबस्व अमृतं एत देव
गोविन्द दामोदर माधवेती |
FAQ Section
Q. आरती करने से पहले का मंत्र ?
Ans. ॐ भूर्भुवः स्वः । तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ।
Q. पूजा के बाद रोज करते हैं आरती तो जान लीजिए इसके नियम नहीं तो भुगतेंगे?
Q. आरती करने से पहले कर्पूरगौरं मंत्र बोलना सही रहता है ?
Ans. जी हां , इस मंत्र के उच्चारण से घर में सुख शांति आती है।
Q. आरती के बाद के जयकारे सोने से पहले मंत्र आरती मंत्र इन संस्कृत नित्य पूजा में बोले जाने वाले मंत्र आरती करने की विधि
Q. आरती की थाली में क्या क्या रखना चाहिए ?
Ans. कपूर, बाती, फूल, अगरबत्ती, धूपबत्ती और अक्षत, चंदन टीका आदि।
इन्हें भी देखें
हनुमान चालीसा अर्थ सहित – Click here
पण्डित धीरेन्द्र शास्त्री जीवन परिचय (बागेश्वर धाम सरकार) – Click here
जानिए क्या है आरती ? – Click here