द्वारका नगरी की कहानी – dwarka nagari story
भगवान श्री कृष्ण ने मथुरा में जन्म लिया था, और वह गोकुल में पले बड़े थे. लेकिन उन्होंने राज द्वारका पर किया था. dwarka nagari rahasya in hindi – पर एक सवाल जो हम सबके मन में अक्सर आता है कि जिस भव्य और दिव्य नगरी को स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने बसाया था. वह समंदर में क्यों समा गई. वह कहां गए ? और इसके बाद भगवान श्री कृष्ण का क्या हुआ ? इन सभी सवालों के जवाब आज हम आपको यहां पर बताएंगे.
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Table of Contents
पूरा नाम – द्वारका नगरी |
देश – भारत |
प्रदेश – गुजरात |
स्थापित किया – श्री कृष्ण ने |
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श्री कृष्ण ने द्वारका नगरी की स्थापना क्यों की थी ?
दोस्तों द्वारका नगरी श्री कृष्ण की कर्म भूमि के नाम से जानी जाती है. महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण ने कंस का वध किया था. तब जरासंध ने प्रण लिया था. कि वह कृष्णा और यदुवंशियों का नाश कर देगा. और जब भी जरासंध को अवसर मिलता था. तो वह मथुरा और यदुवंशियों पर दाबा बोल देता था. उसका अत्याचार रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था. ऐसे में यदुवंशियों की सुरक्षा के लिए भगवान श्री कृष्ण ने मथुरा को छोड़ देना ही बेहतर समझा. मथुरा छोड़ने के बाद उन्होंने समुद्र किनारे एक भव्य और दिव्य नगरी की स्थापना की थी. जिसका नाम द्वारका नगरी रखा गया. यहां आने के बाद वह अपने प्रियजनों के साथ सुकून से जीवन यापन करने लगे थे. फिर वक्त का पहिया घूमा और लगभग 36 वर्ष तक कुशलता पूर्वक राज्य का संचालन करते हुए एक दिन अचानक श्री कृष्ण के देह त्यागने के बाद द्वारका नगरी समुद्र में समा गई थी. दोस्तों पौराणिक कथा में इस घटना से संबंधित दो कथाओं की जानकारी मिलती है. पहली कथा यह है कि महाभारत युद्ध के बाद माता गांधारी ने श्री कृष्ण को श्राप दिया था. और दूसरी कथा यह है कि ऋषियों ने श्री कृष्ण के पुत्र साम को श्राप दिया था.
पहली कथा – माता गांधारी द्वारा श्री कृष्ण को दिया हुआ श्राप.
महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद जब पांडव कौरव पर विजय प्राप्त करके हस्तिनापुर वापस लौट रहे थे. तब महर्षि व्यास के शिष्य संजय ने माता गांधारी को यह बताया कि पांडव अपने साथियों के साथ हस्तिनापुर आ चुके हैं. यह सब सुनकर माता गांधारी को बड़ा ही मानसिक कष्ट हुआ था. फिर भी किसी तरह उन्होंने अपने मन को संभाला, लेकिन जब उन्हें यह बात पता चली कि पांडवों के साथ भगवान श्री कृष्णा भी हैं. तो वह तिलमिला उठी और उनका मन प्रतिशोध के लिए ललाई तो उठा था. क्रोध में आकर उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को श्राप दे दिया. और कहा कि अगर मैंने अपने आराध्य की सच्चे मन से प्रार्थना की है. और निस्वार्थ भाव से पति व्रत का पालन किया है. तो जिस प्रकार मेरे कुल का नाश हुआ है. बिल्कुल वैसे ही तुम्हारी आंखों के सामने तुम्हारे कुल का भी नाश हो जाएगा. तुम्हारी यह आलीशान द्वारका नगरी समुद्र में डूब जाएगी. गांधारी के इतना कहने के बाद भगवान श्री कृष्णा मुस्कुराते हुए बोले – की माता मुझे इसी आशीर्वाद की प्रतीक्षा थी. मैं आपके इस रात को स्वीकार करता हूं. और इसके बाद वह द्वारका की ओर प्रस्थान कर चले गए.
दूसरी कथा – श्री कृष्ण के पुत्र साम को दिया हुआ श्राप.
एक बार की बात है महर्षि विश्वामित्र, कन, देवर्षि नारद आदि द्वारका आए थे. जब वह भ्रमण पर निकले तब वहां कृष्ण के पुत्र शाम अपने साथियों के साथ मौजूद थे उन लोगों ने ऋषियों के साथ मजाक करने की योजना बनाई थी. जिस क्रम में साम को स्त्री का वेश धारण करके और उसे उनसे यह पूछना था, कि मेरे गर्भ से क्या उत्पन्न होगा. ऋषियों ने जब देखा कि यह युवक हमारा अपमान कर रहे हैं. तो क्रोधित होकर उन्होंने उसे श्राप दे दिया कि श्री कृष्ण का यह पुत्र एक लोहे का मूसल उत्पन्न करेगा. जिसके द्वारा तुम जैसे क्रूर अहंकारी और क्रोधी लोग अपने समस्त कुल का संहार करेंगे. भगवान श्री कृष्णा और बलराम के सिवा सब लोगों पर उसे मुसल का प्रभाव होगा. जब भगवान श्री कृष्ण को यह बात पता चली तो उन्होंने कहा कि यह जरूर सत्य होगा.
कैसे हुआ समस्त यदुवंशियों का नाश.
माता गांधारी द्वारा श्री कृष्ण को दिया हुआ श्राप और ऋषियों द्वारा श्री कृष्ण के पुत्र साम को दिया हुआ श्राप के फल स्वरुप ही साम ने एक मुसल को उत्पन्न किया. पर जब यह बात राजा उग्रसेन को पता चली, तो उन्होंने मुसल को चुराकर चुपचाप समुद्र में फिकवा दिया. साथी यह भी घोषणा करवा दी की कोई भी मदिरा का उत्पादन नहीं करेगा. जो भी व्यक्ति छिपकर मदिरा तैयार करेगा तो उसे मृत्यु दंड की सजा दी जाएगी. और यह सुनकर द्वारका बासियो ने मदिरा नहीं बनाने का प्रण ले लिया. इसके बाद द्वारका में आए दिन अशुभ घटनाएं घटने लगी. कभी तेज आंधी आई तो कभी तेज तूफान श चूहों की संख्या अचानक से इतनी ज्यादा बढ़ गई थी. कि मनुष्यों से ज्यादा चूहे दिखने लगे थे. और सोते हुए मनुष्यों के बाल और नाखून तक कुतरने लगे थे. पुरी द्वारका नगरी में अजीब सी घटनाएं घटित होने लगी थी. गायों के पेट से गधे पैदा होने लगे थे. समस्त यदुवंशी तामसिक क्रिया में सम्मिलित रहने लगे थे. भगवान श्री कृष्ण ने जब यह सब देखा तो उन्होंने सोचा कि कौरवों की माता गांधारी का श्राप सत्य होने वाला है. और ऋषियों द्वारा साम को दिया हुआ श्राप भी सत्य होने का समय आ गया है.
यदुवंशियों की तीर्थ यात्रा
इन अपशगुणों को देखकर तथा पक्ष के तेरहवे दिन अमावस्या का संयोग जानकार श्री कृष्णा काल की अवस्था पर विचार करने लगे. उन्होंने देखा कि इस समय ऐसा ही योग बन रहा है. जैसा महाभारत युद्ध के समय बना था. और फिर माता गांधारी के श्राप को सत्य करने के उद्देश्य से श्री कृष्ण ने यदुवंशियों को तीर्थ यात्रा करने की आज्ञा दे दी. भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा से सभी यदुवंशी समुद्र के तट पर आकर निवास करने लगे. प्रभास तीर्थ में रहते हुए एक दिन जब सभी आपस में बात कर रहे थे. तभी सात्विकी ने आवेश में आकर कृत वर्मा का उपहास और अनादर कर दिया. कृत वर्मा ने भी कुछ ऐसे शब्द मुख से निकाल दिए. जिससे सात्विकी का क्रोध सातवे आसमान पर पहुंच गया. और उसने कृत वर्मा का वध कर दिया. यह देख अंधक वंशियों ने सात्विकी को चारों ओर से घेर लिया. और उन पर आक्रमण कर दिया. इस दृश्य को देखकर श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम् उनकी सहायता के लिए दौड़े. सात्विकी की और प्रद्युम अकेले ही मोर्चा संभाल रहे थे. लेकिन अंधक वंशियों की संख्या अधिक होने के कारण उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था. और अंत में वह उनके हाथों मारे गए थे.
पुत्र की सूचना मिलने पर पहुंचे श्री कृष्ण
अपने पुत्र की मृत्यु से श्री कृष्ण को अत्यधिक क्रोध आया, और उन्होंने एक मुट्ठी घास उखाड़ ली. जैसे ही घास हाथ में आती वे लोहे का मूसल बन जाती. मित्रों ऋषियों द्वारा दिए गए श्राप के कारण ही ऐसा हो रहा था. मुसल इतना शक्तिशाली था कि उसके एक ही प्रहार में किसी का भी वध हो सकता था. और इस प्रकार यदुवंशी आपस में ही युद्ध करने लगे. श्री कृष्ण के देखते ही देखते साम ,चारुदेष्ण, अनिरुद्ध और गध की मृत्यु हो गई. इसके बाद भगवान श्री कृष्ण का रूद्र रूप देखने को मिला. और उन्होंने सभी सूरमाओं का वध कर डाला. अंत में श्री कृष्ण और उनके सारथी दारुख शेष बचे. भगवान कृष्ण ने दारुख से कहा तुम इसी क्षण हस्तिनापुर जाओ और अर्जुन को सारी घटना विस्तार से बताओ. और अर्जुन को यहां ले आओ. दारुख ने उनकी आज्ञा का पालन किया. इसके बाद श्री कृष्ण, बलराम को इसी स्थान पर रहने का कहकर अपने महल वापस लौट आए. और श्री कृष्ण ने पिता वासुदेव को सारी घटना बताई. जिसको सुनकर उन्हें बहुत दुख हुआ. श्री कृष्ण ने अपने पिता से कहा कि जब तक अर्जुन नहीं आ जाता तब तक स्त्रियों की रक्षा का दायित्व आप संभालिए. क्योंकि वन में बलराम मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं. मैं उन्हीं के पास जा रहा हूं. नगर में स्त्रियों की चीख पुकार म मचनी शुरू हो गई थी. ऐसे में श्री कृष्ण ने स्त्रियों को सांत्वना देते हुए कहा कि घबराइए मत अर्जुन आने ही वाले हैं. और वे सब संभाल लेंगे इतना कहकर श्री कृष्ण बन की ओर चले गए.
बलराम में अपने शरीर का त्याग कर दिया
जब कृष्ण बन में पहुंचे तो देखा कि बलराम जी समाधि में ली है. अचानक ही उनके मुख से एक सफेद रंग का सर्प निकाला और समंदर की ओर चला गया. मित्रों, वह कोई सामान्य सर्प नहीं था. क्योंकि उसके हजारों मस्क थे. और इतना ही नहीं समुद्र देवता ने स्वयं प्रकट होकर उस शेषनाग का अभिवादन किया. कुछ ही देर में बलराम ने अपने शरीर को त्याग दिया. श्री कृष्ण उस सुने वन में अकेले घूमते हुए माता गांधारी के श्राप के बारे में चिंतन करने लगे. और अपनी इंद्रियों को संयमित करते हुए धरती पर लेट गए.
भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु
श्री कृष्ण जब धरती पर लेटे थे. तभी जरा नामक एक शिकारी अपने शिकार की तलाश में वहां आ पहुंचा. दूर से उसे लगा कि वहां कोई हिरण है. और उसने श्री कृष्ण के ऊपर बाण चला दिया. परंतु जब वह अपने शिकार को पकड़ने के लिए आगे बढ़ा तो वहां श्री कृष्णा थे यह देखकर उसे बड़ा पछतावा हुआ भगवान ने उसे शिकारी को आश्वासन दी और स्वयं परमधाम चले गए वहां कई मुनि और देवताओं ने उनका भव्य स्वागत किया. फिर वह शिकारी हस्तिनापुर गया और पांडवों को पूरी घटना की जानकारी दी जिसे सुनकर पांडव को बड़ा दुख हुआ.
द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई
दूसरी तरफ अर्जुन भी द्वारका पहुंच गए थे. वहां की स्थिति देखकर उनके मन को बहुत ही दुख हुआ. श्री कृष्ण की रानियां ने जब अर्जुन को देखा तो उनकी आंखों से आंसुओं की धारा निकल पड़ी थी. इस दृश्य को देखकर अर्जुन की आंखें भी नाम हो गई थी. वहां का पूरा माहौल ही शोकमय हो गया था. वासुदेव भी वही उपस्थित थे. उन्होंने अर्जुन को श्री कृष्ण का संदेश बताते हुए कहा कि – द्वारका नगरी समुद्र में डूबने वाली है. इसलिए आप नगर वासियों को लेकर किसी सुरक्षित स्थान पर चले जाइए. वासुदेव जी की बातें सुनकर अर्जुन ने दारूख से सभी मंत्रियों को बुलाने के लिए कहा. मंत्रियों के आते ही अर्जुन ने कहा कि मैं सभी नगर वासी को यहां से इंद्रप्रस्थ लेकर जाऊंगा. क्योंकि शीघ्र ही इस नगरी को समुद्र अपने अंदर समा लेगा. इसके बाद सभी मंत्री तुरंत ही अर्जुन की आज्ञा के पालन में जुट गए. अर्जुन ने वह रात श्री कृष्ण के महल में ही बिताई. अगली सुबह श्री कृष्ण जी के पिता वासुदेव जी ने भी अपने प्राण त्याग दिए. अर्जुन ने विधि विधान से उनका अंतिम संस्कार किया. वासुदेव जी की पत्नी देवकी, भद्रा, रोहिणी और मदिरा भी चिता पर बैठकर सती हो गई. इसके बाद अर्जुन ने प्रवास तीर्थ में मारे गए समस्त यदुवंशियों का भी अंतिम संस्कार किया. सातवें दिन अर्जुन श्री कृष्ण के परिजनों तथा सभी नगर वासियों को साथ लेकर इंद्रप्रस्थ की ओर चल दिए. उन सभी के जाते ही द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई. इस दृश्य ने सभी को आश्चर्य में डाल दिया था. और इस प्रकार सोने की सजी दिव्य द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई थी.
FAQ Section
Q. द्वारका नगरी समुद्र में क्यों डूबी?
Ans. भगवान श्री कृष्णा पर किसी शिकारी ने हिरण समझ कर बात चल दिया था जिसके कारण भगवान श्री कृष्ण देव लोग चले गए और फिर उधर जब पांडवों को द्वारका में हुई अनहोनी का पता चला तो अर्जुन तुरंत द्वारका गए और श्री कृष्ण के बचे हुए परिजनों को अपने साथ इंद्रप्रस्थ लेकर चले गए इसके बाद देखते ही देखते पूरी द्वारका नगरी रहस्यमय तरीके से समुद्र में डूब गई.
Q. द्वारका नगरी प्रसिद्ध क्यों है?
Ans. हिंदू धर्म ग्रंथो के अनुसार द्वारका नगरी को भगवान श्री कृष्ण ने बसाया था. द्वारका नगरी श्री कृष्ण की कर्मभूमि है.
Q. द्वारका में घूमने के लिए क्या-क्या है?
Ans. द्वारका में घूमने के लिए द्वारकाधीश मंदिर है जहां श्री कृष्ण की मूर्ति है, बेट द्वारका, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग और गोमती घाट है. वहां का नजारा बहुत ही ज्यादा सुंदर है
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